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सिंघी जैन ग्रन्थमाला ]
समस
प्रका
तिवार
तदन्नौ लिना। प्राप्यादेशमार्वियामा से ज्या प्रागजी मुद्यले ला सभी तकात त्रस्य श्री तर खरोमदात्मा मामादाय त्याला कल गया रवतीतिर्दितो॥श्राधमा कष्यावदेत्र वरितची संघ किजंग व्यावित्र्यकम यादव कज रजः जुजैः प्रतिष्टा सार्द कवलये यावच्चमा चाहत्य विषामिदे सुचरितताच ना मइदयत्र न सरिविरचितेश्री मरियनानि श्रीविजयसेन शि नीर्थयात्रा वतानामपेचद 7: सः॥श्रमुक्रमार्गे यदेतद्विरुक्तिमुक्ति से वच्छेद हे अभिगम समरसवती सके धापीय साथीः प्राप्यश्री शारदेकसदेने हदयाल केना संतित सकलासु कला सुनिलाः तकारस्य लातूर ने वव्यापारिए के विद्धति करणग्राम मात कश्यतेम द्योगसिदेः फलम मलमल के वलेव सुपालः। श्राक अमस्फियन वमुका काव्य नाना यदीयविशुस्पानंद लक्ष्मी मितिदिज्ञातियाशा धर्म रूपशरी शा३४ वायु १२१३ नय प्रत्येकमन्त्र श्रधाय विगलय्य विनिश्चिती द्वाविशद कर लोक दिवा राहती सित ॥ ॥ श्रामावाटे व शीशी सहशहा गजन्मा पुत्रो मानिलयाः विदितवरणो रुद्रपलाय ग है। श्रीमदेवेंद्र शिथः सुरमसुखलकारे काव्यमेवेल मी लेखा खिलानिषयः मस्यः शोदर्य ] ॥ का
पालवर नवरसास्वाद कविता धा
-"पर४
सं० १४४६ वर्षलिखित, कागळ प्रति
[ धर्माभ्युदय महाकाव्य
नारहरु
सवाह
त्रिपकिन
यतास्त्र