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धर्माभ्युदय-प्रास्ता विक
प्रस्तुत 'धर्माभ्युदय अपर नाम सिंघपति चरित'. महाकाव्य संपादन-प्रकाशन कार्य
१२-१३ वर्ष पहेला, विद्वद्वरेण्य मुनिमतल्लिक श्री पुण्यविजयजी तथा एमना स्वर्गवासी शिष्यवत्सल गुरुवर्य श्री चतुरविजयजी महाराजे प्रारंभ्यु हतुं अने भावनगरनी श्री जैन आत्मानन्द सभा द्वारा प्रकाशित 'जैन आत्मानन्द-प्रन्थ-रत्नमाला'ना एक मणका तरीके एने प्रकट करवानी योजना विचारी हती. परंतु 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला'ना गुम्फनकार्यमा तेमनी संपूर्ण सहानुभूति भरेली स्मृतिना निदर्शकरूपे तेमणे पाछळथी ए ग्रन्थने, प्रस्तुत ग्रन्थमाळाने समर्पित करवानो निर्णय करी, तद्वारा म्हारा प्रत्येनो पोतानो परमस्नेहात्मक वात्सल्यभाव प्रदर्शित करवानो मनोभाव प्रकट कर्यो. परंतु दैवना दुर्विलासथी, मन्थनुं मुद्रण कार्य संपूर्ण थयां पहेला ज, पूज्यपाद श्री चतुरविजयजी' महाराजनो स्वर्गवास थई गयो अने तेथी केटलाक समय सुधी आनुं कार्य अटकी पड्यु. पोताना परम गुरुना विरहथी व्याकुळ थएला चित्तंने कालक्रमे प्राप्त थंएली थोडीक स्वस्थता पछी, मुनिवर श्री पुण्यविजयजीये एजें कार्य शनैः शनैः आगळ चलाव्युं अने यथावकाश पूर्ण कयु, आरीते अहर्निश ज्ञानोपासक ए अनन्य गुरु-शिष्यनी सुप्रसादीरूपे, हवे आ ग्रन्थमणि ज्ञानाभिलाषी जनोना करकमळमा उपस्थित करतां म्हने परम आनन्द अने उल्हास थाय छे. ६१. ग्रन्थर्नु नामकरण
आ महाकाव्यनी रचना नागेन्द्र गच्छना आचार्य उदयप्रभसूरिये, पोताना परम भक्त, श्रावक श्रेष्ठ, इतिहासप्रसिद्ध गूर्जर महामात्य वस्तुपाले करेला धर्मना 'अभ्युदय' कार्यने उद्देशीने करी छे तेथी एनुं मुख्य नाम 'धर्माभ्युदयमहाकाव्य एवं राखवामां आव्युं छे. वरतुपाले, शत्रुजय अने गिरनार तीर्थनी यात्रा माटे जे भव्य संघो काढ्या हता अने ते संघोना संघपतिरूपे तेणे- ए तीर्थयात्राओ दरम्यान जे उदार द्रव्यव्यय कयों हतो तेने लक्षीने एनुं बीजें नाम 'संघपतिचरित' एवं पण आपवामां आव्यु छे.
आ अन्धनो विस्तृत परिचय आपतो एक अभ्यासपूर्ण लेख, पाटणनिवासी विद्वान् लेखक श्री कनैयालाल भाईशंकर दवेए लख्यो छे जे 'भारतीय विद्या' नामक संशोधन विषयक पत्रिकाना, प्रस्तुत ग्रन्थमाळाना संस्थापक स्व० बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघीनी पुण्यस्मृति निमित्ते, म्हें प्रकट करेला ३ जा पुस्तकमा प्रकाशित थयो हतो. ए लेखमां अभ्यासी लेखके, प्रस्तुत ग्रन्थ साथे संवन्ध धरावती घणी खरी ज्ञातव्य बाबतो उपर बहु जं सरंस प्रकाश पाड्यो छे; तेथी ते समग्र लेख आना 'आ मुख' तरीके आ पछी आपवामां आव्यो 'छे. भाई श्री-कनैयालाले जे अभ्यास, उत्साह, श्रम अने श्रद्धापूर्वक ए लेख तैयार कर्यो छे अने तेम करीने प्रस्तुत ग्रन्थना अध्ययन-वाचन करनाराओने उपयोगी माहिती आपवानो जे प्रशस्य प्रयास सेन्यो छे, ते माटे हुं तेमने अहिं म्हारा सादर अभिनन्दन आपंवानी तक लऊ कुं.
घ.का.१