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________________ वेदना हुई तथा इसे निर्मूल बनाने का सत् प्रयत्न हुआ। कल जब नाचार्यश्री का चान्दारूण आगमन हुआ तो उस गाव के लोग भी एकत्रित होकर वहा उपस्थित हुए और अपनी समस्या आचार्यश्री के सम्मुख प्रस्तुत की । आचार्यश्री ने कहा-साधु-सम्पर्क तो सस्कारनिर्माण, आत्म-मार्जन और गुण-वर्धन के लिए है । ये कार्य नही सधते है तो वहा साधुनो का कोई उपयोग नहीं । फिर व्यर्थ मे ही वहा क्यो जाया जाए ? जनसाधारण की दृष्टि मे वात बहुत सीधी सी है । साधु आए तो ठीक, नही पाए तो भी ठीक । उनको इससे क्या लगाव ? साधु-सत कोई धन-संपत्ति थोडे ही देते है । पर उस गाव के भाई इतने तथ्यानभिज्ञ नहीं थे। साधु सगति का यह निषेध उन्हे बहुत बड़े लाभ से वचित रहना दीखा और समय समय पर जो प्रकाश की रेखा मिलती है वह भी हाथ से जाती हुई दृष्टिगोचर हुई। तब उनकी अन्त पीड़ा का पार न रहा। एक अज्ञात भय से काप से गए और वर्षावास के लिए अनुनय-विनय करने लगे । बहुत देर तक वैसा करते रहे । उनकी भक्ति का प्रवाह जब वह रहा था उस समय मेरे मन मे एक विचार आया कि "रात का समय है, काफी दूर से आए है। पता नहीं ये यहा सोएगे या वापिस जाएगे और इनके सोने का क्या प्रबन्ध है ? कोई भी तो चिंता इनको नहीं सता रही। साधुओ के सम्पर्क से ऐसा उन्हे क्या मिलने वाला है " यह विचार चल ही रहा था कि गहराई से उठा हुआ दूसरा विचार इससे आ टकराया कि परमार्थ के लिए है । अपने लिए ही नहीं परहित के लिए है, भावीनिर्माण के लिए है और सन्तति कल्याण के लिए है ।" उनकी इस उदात्त भावना का ध्यान आया तो अनायास ही भारतीय प्रात्मा की उच्चता के प्रति सन्मान के भाव उभर आए और मस्तक श्रद्धावनत हो गया। विनती अव भी चालू थी, आचार्यश्री कुछ भी नही कह रहे थे । वे पहले इस मनमुटाव को मिटाना चाहते थे और आपस के कलह का
SR No.010636
Book TitleJan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Baccharaj Nahta
PublisherMeghraj Sanchiyalal Nahta
Publication Year
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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