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mernama बहुत दिनोंसे मेरी भावना थी कि मैं हिन्दी भापामें इसे कुछ विशदरूप दूं, जिससे इस भक्तिके द्वारा अधिक लाभ उठाया जा सके और
साधारण जनताका भी कुछ विशेप उपकार बन m सके । उसीके फलस्वरूप यह 'सिद्धि-सोपान' 0 पाठकोंके सामने उपस्थित है। इसमें उक्त ।
'सिद्ध-भक्ति' की कोई भी बात छोड़ी नहीं। गई है, उसके पूर्ण अर्थ या भावार्थको लानेकी
शक्तिभर चेष्टा की गई है और क्रम भी सब " उसीका रक्खा गया है। बाकी जो कुछ अधिक
है वह या तो उक्त भक्तिके शब्दों में संनिहित गूढ अर्थका विशदीकरण है और या विषयका स्पष्टीकरण है, जिसके लिये प्रभाचन्द्रकी टीकाकेत
अतिरिक्त खुद पूज्यपादके और स्वामी समन्त0 भद् तथा कुन्दकुन्दाचार्य जैसे महान् आचा। यौके वाक्योंका सहारा लिया गया है। उदाहर
के तौर पर तीसरे पद्यका उत्तरार्ध मूलके 4
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