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होता है। इसमें सूत्ररूपसे सिद्धिका, सिद्धिके
मार्गका, सिद्धिको प्राप्त होनेवाले आत्माका, 0 आत्मविपयक जैनसिद्धान्तका, सिद्धिके क्रमका, सिद्धिको प्राप्त हुए सिद्धोका और सिद्धोंके सुखादिका अच्छा स्वरूप बतलाया गया है और
इसलिए यह पाठ मुझे बहुत पसंद आया है। mil जवसे मुझे इसकी प्राप्ति हुई है मैं प्रायः नित्याही 0 10 प्रातःकाल इसका पाठ करता रहा हूँ और कभी ।।
कभी तो दिन रातमें कई कई बार पाठ करनेकी भी प्रवृत्ति हुई है । परन्तु यह भक्ति-पाठ प्रायः । इतना कठिन, गूढ और अर्थ-गौरवको लिये हुए है कि सहजहीमें इसके पूर्ण अर्थका बोध नहीं होता और इसलिये अनेक वार थोडीसी भी चित्तकी अस्थिरता अथवा मनोयोगकी कमी होते हुए इसके भीतर प्रवेश नहीं होता था 0 और यह पाठमात्र ही रह जाता था। इसलिये REMEDESDEOSDEPRESSES
RSEEDSSSSSSSSSSSSSSSळक