________________
ॐ नमः सिद्धेभ्यः।
श्रीसिद्धर्पिविरचित...
उपमितिभवप्रपंच...
हिन्दी भाषानुवाद |
मंगलाचरण |
नमो निर्नाशिताशेषमहामोहहिमार्तये । लोकालोकमलालोकभास्वते परमात्मने ॥ १ ॥ नमो विशुद्धधर्माय स्वरूपपरिपूर्त्तये । नमो विकारविस्तारगोचरातीतमूर्त्तये ॥ २ ॥ नमो भुवनसन्तापिराग केसरिदारिणे ! प्रशमामृतवृत्ताय नाभेयाय महात्मने ॥ ३ ॥ नमो द्वेष गजेन्द्रारिकुम्भनिर्भेदकारिणे । अजितादि जिनस्तोमसिंहाय विमलात्मने ॥ ४ ॥ नमो दलितदोपाय मिथ्यादर्शनसूदिने । मकरध्वजनाशाय चीराय विगत द्विपे ॥ ५ ॥ भावार्थ --- जिसने महामोहरूपी हिमकी सारी पीड़ाओंको नाश > कर दी हैं और जो अलोकके सहित तीनों लोकोंको निर्मलतासेस्पष्टता से प्रकाशित करने के लिये सूर्यके समान है, उस परमात्माको नमस्कार हो । अभिप्राय यह है कि जिसतरह सूर्य शीतकी पीड़ाको दूर
१ मोहिनी कर्मकी २८ प्रकृतियां हैं । तत्संबंधों नाना प्रकारकी पीढ़ाएं ।