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कह चुके हैं, महान् दुःखोंको अरहटकी घड़ियोंके समान निरन्तर अनन्तवार भोगता हुआ भ्रमण करता है । ऐसी स्थितिमें भिखारीके वर्णनमें जो कहा है कि, उसे शीत, आताप, डांस, मच्छर, भूख, प्यास आदि घोर नरकके समान वेदनाएं पीड़ित करती हैं, सो उन सबको इस जीवके सम्बन्धमें घटित कर लेना चाहिये । __ और वहां कहा है कि, "उस भिखारीको देखकर सज्जनोंको दया उत्पन्न होती है, मानी पुरुपोंको हंसी आती है, वालकोंको खेल सूझता है और पापकर्म करनेवालोंके लिये पापकोंके फलका दृष्टान्त मिलता है।" सो भी सब इस संसार नगरमें मेरे जीवके विषयमें योजित कर लेना चाहिये,---यह जीव निरन्तर असातारूपी सन्निपातसे ग्रसित दिखलाई देता है, इसलिये शान्ति मुखके रसमें जिनका आत्मा अतिशय तन्मय हो रहा है, उन ज्ञानी साधुओंकी कृपाका स्थान तो होना ही चाहिये । क्योंकि उनका चित्त दुखी जीवापर सर्वदा ही करुणाभावमय रहता है । और जो सरागसंयमी मुनि तपश्चरण करनेमें निरन्तर उद्यत रहते हैं वे अपनी वीरताके अभिमानमें मानी पुरुषोंके समान यह सोन करके कि, इस धर्मपुरुपार्थके साधन करनेमें असमर्थ नीवका पुरुषत्व किस कामका ? अनादर दृष्टिसे देखते हैं। इस लिये उनके हास्यका स्थान समझना चाहिये । और जिनके चित्तमें मिथ्यात्व बस रहा है, तथा जिन्होंने किसी प्रकारसे लवमात्र विषयसुख पाया है, ऐसे बालजीवोंके लिये ( मूखीके लिये ) यह पापी जीव खेल करनेका स्थान है । क्योंकि जिनका चित्त धनके घमंडसे उद्धत रहता है, वे ऐसे कर्म करनेवालोंकी नाना प्रकारसे विडम्बना करते हैं, यह प्रत्यक्ष ही देखनेमें आता है। और जब पापके फलोंका निरूपण किया जाता है, तब ऐसा जीव दृष्टान्तस्वरूप होता ही है । क्योंकि