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उस दरिद्रीको वडे पेटवाला कहा है, उसी प्रकारसे इस जीवको भी विपयरूपी वुरे भोजनसे अपने पेटको पूरा नहीं भर सकनेके कारण बड़े पेटवाला समझना चाहिये। जैसे उस दरिद्रीको वन्धुओंसे रहित कहा है, उसी प्रकारसे मेरा यह जीव भी जिसके आदिका कुछ पता नहीं है, ऐसे भवभ्रमणमें अकेला जन्मता है, अकेला मरता है और अकेला ही अपने कर्मोके परिपाकके अनुसार पाये हुए सुख दुःखोंको भोगता है, इसलिये वास्तवमें इसका कोई वन्धु नहीं है । जिस प्रकार वह निप्पुण्यक दरिद्री दुर्बुद्धि है, उसी प्रकारसे यह जीव भी अतिशय उलटी बुद्धिका है। क्योंकि यह अनंत दुःखोंके कारणरूप विषयोंको पाकर सन्तुष्ट होता है, वास्तवमें जो शत्रुओंके समान हैं, उन कपायोंको हितू वन्धुओंके समान सेवन करता है, वास्तवमें अंधेपनके समान जो मिथ्यात्व है, उसको सुदृष्टि (पटुष्टिरूप) समझके ग्रहण करता है, नरकोंमें पड़नेके कारणरूप जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पांच अत्रत हैं, उन्हें आनन्ददायक समझता है, जो अनेक अनों के करनेवाले हैं, उन पन्द्रह प्रमादोंको अतिशय स्नेही मित्रोंके समान देखता है, मन वचन कायके अशुभ योगोंको जो कि धर्मरूप धनको हरण करनेके कारण चोरोंके समान हैं, बहुतसा धन कमानेवाले पुत्रोंके समान मानता है और पुत्र, स्त्री, धन, सुवर्ण आदिको जो कि गाड़े बन्धनोंके समान हैं, अतिशय आल्हादके करनेवाले सोचता है, इन सब चेष्टाओंसे यह दुर्बुद्धि ही है।
जिस प्रकार उस भिखारीको धनरहित वा दरिद्री वतलाया है, उसी प्रकारसे यह जीव सद्धर्मरूपी एक कौड़ी भी पास न रहनेके का
१ स्वीकथा, राजकथा, भोजनकथा, राष्ट्रकथा, क्रोध, मान, माया, लोभ, पांचों इन्द्रियां, निद्रा, और स्नेह ये १५ प्रमाद हैं ।