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करेगी। इसलिये उन्हें किसी द्वारपालने किसी तरह भीतर चला आने दिया है, ऐसा समझना चाहिये और ऐसे प्राणियोंको दूसरे चिन्होंसे पहिचानकर तुम्हें भी प्रयत्न करके रोक देना चाहिये। जो रोगी राजभवनको देखकर प्रसन्न होते हैं, उनका भविष्यमें कल्याण होनेवाला होता है, इसलिये हम उनकी ओर विशेषतासे देखते हैं। जिन्हें स्त्रकर्मविवरने यहां आने दिया हो, उन्हें तुम इन तीनों औपधियोंके पानेके पात्र समझो । वास्तवमें ये तीनों औषधियां ही उन पात्रों और अपात्रोंके लिये कसोटीके समान है, जो कि प्रयोग करनेसे अपने गुणोंके द्वारा ग्रहण करने योग्य और नहीं ग्रहण करने योग्यकी जांच कर देती हैं । जिन रोगियोंको ये औषधियां पहले तो रुचें और फिर पीछे किसी प्रकारके कष्टके विना प्रयोग करनेसे गुण करें, उन्हें सुसाध्य रोगी समझना चाहिये । जो आदिमें तो ग्रहण नहीं करें, परन्तु पीछे कालक्षेप करके बलपूर्वक इन औषधियोंका सेवन करें, उन्हें पीछे सुधरनेवाले कष्टसाध्य समझना चाहिये । और जिन्हें ये औषधियां बिलकुल न रुचें, प्रयोग करनेपर भी जो कुछ असर न करें तथा औषधि देनेवालेपर उलटा द्वेष करने लगें, उन नांच पुरुषोंको समझना चाहिये कि, सर्वथा असाध्य हैं।"
इस प्रकारसे राजराजेन्द्र सुस्थित महाराजने मुझे जो कुछ समझाया था, उसके अनुसार लक्षण मिलानेसे तू मुझे 'कष्टसाध्य' जान पड़ता है । इस संसारमें जो प्राणी शंकारहित होकर जबतक जीते हैं तब तक इस नरेन्द्रको विशेषतासे अपना स्वामी जानते हैं, उन्हें ही इन औषधियोंका प्रयोग जो कि अचिन्तनीय पराक्रमोंसे परिपूर्ण और सम्पूर्ण रोगोंका नाश करनेवाला है, गुणकारी होता है । इसलिये तू इस श्रेष्ठ राजाको अपना स्वामी समझ। क्योंकि "भावसारं महात्मानो