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१३८ व्याकुलतासे रोता है, तब उसपर सारे जगतको करुणा आ जाती है, और दीनता व्याकुलता और शोक आदिसे मारा हुआ होनेके कारण घोर नरकोंके समान दुःखोंको सहा करता है । इस तरह सारे दुर्गुणोंका पात्र होनेके कारण 'पापी है,' 'अदर्शनीय है' ऐसा कहकर लोग उसकी निन्दा करते हैं।" __ "और यह भी सोचना चाहिये कि, ऐसे दो पुरुष जो अजेय वल, ज्ञान, पौरुष और पराक्रम आदि सारे गुणों में एक वराबर हैं-किसी वातमें एक दूसरेसे कम नहीं हैं, जब एक ही साथ धन कमानेके लिये प्रवृत्त होते हैं, तब क्या कारण है कि उनमेंसे एक तो खेती, पशुपालन, व्यापार, राजसेवा अथवा और भी जो कोई काम करता है, उसीमें सफलता प्राप्त करता है, परन्तु दूसरा उन्हीं कामोंको करके न केवल विफल ही होता है, वल्कि उलटा अपने वापदादाओंका कमाया हुआ जो थोड़ा बहुत धन होता है, उसे भी पूरा कर देता है।" __ "इसके सिवाय यह भी विचारना चाहिये कि, कोई दो पुरुषोंको पांचों इन्द्रियोंके उपमारहित स्पर्श, रस, शब्द आदि पांचों विषय जब एक साथ प्राप्त होते हैं, तब क्या कारण है कि, उनमें से एक तो प्रबल शक्ति और बढ़ती हुई प्रीतिवाला होकर उन्हें निरन्तर भोगता है और दूसरा अकालमें ही कृपणता अथवा अन्य किसी रोगादि कारणके उत्पन्न हो जानेसे, चाहता है तो भी उन्हें नहीं भोग सकता है । संसारी जीवोंमें जो ऐसी ऐसी विशेषताएं होती हैं, उनका कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं दिखलाई देता है, और विनाकारणके कुछ हो नहीं सकता है। क्योंकि यदि विनाकारणके ही ऐसी विशेषताएं हो, तो वे आकाशके समान या तो सर्वदा ही रहना चाहिये, या शशाके (खरगोशके ) सींगोंके समान कभी नहीं रहना चाहिये ।