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________________ । यह प्रसूरि-त्रिवर्णाचारके चौथे पर्वका १९७ वौं पञ्च है। उप त्रिवर्णाचारके और भी बहुत से पप इस प्रथमें पाये जाते हैं। इसी तीसरे परिच्छेदमें उपमा २५ पच और है, वो उक त्रिवणाचारसे उठाकर रखे गये हैं। इससे प्रकट है कि यह ग्रंथ (प्रतिधापाठ) प्रमारित्रिवणीचारके वाहका बना हुआ है। ब्रह्मसूरिका समय विक्रमको प्रायः १५वीं शताब्दी पाया जाता है। इस लिए यह प्रतिपाठ विक्रमकी १५ थी खताब्दी के बादका बना हुआ है। ' () इस ग्रंथके शुरुमें मंगलाचरणके बाद प रववेकी की प्रतिज्ञा की गई है उसमें नेमिचंदप्रतिपाठ का भी एक उल्लेख है। यथा- अथ भीनेमिचन्द्रीयविद्याशासमार्गतः। प्रतिष्ठायास्तवाद्युतगंगानां स्वयमंगिनाम् ॥ ३॥ बेचिन्ना प्रतिष्ठापाठ गोम्मटसार' के कां नेमिचन्द सिद्धान्त चक्रवतीका पनामा हुनान होकर उन ग्रहस्प नेमिचंद्रसारिका बनाया हुआ है वो देवेन्द्र के पुत्र तथा महासरिके मानने थे और जिनके सादिकका विशेष परिचय पाने के लिए पाठकोंको सक प्रतिष्ठापाठ पर लिखे हुए उस नोटको देखना चाहिए जो अनहितांपाके १२३ भागके अंक नं.४-५ में प्रकाशित हुआ है। उक नोट में नेमिचद्र-प्रतिष्ठापाठके बननेका समय विक्रमकी १६वीं शताब्दी के समय बताया गया है। ऐसी हालतमें विवादस्य प्रतिष्ठापाठ मिन मकी १९ वी शताब्दीका या उससे भी पीछेका बना हुण्य मानम होता है। परन्तु इसमें तो कोई संदेह नहीं कि वह १६ को शाखाब्दीसे पहलेका बबा हुमा नहीं है। अाद, विक्रमकी १५ वी शताब्दीके यादका घना हुआ है। परन्तु कितने पादका धना हुमा है, तवा निश्चय करना ममी और बाकी है। (.) सोमनभिषाचार के पहले अध्यायमें एक प्रतिक्षावाच स प्रकारसे , यत्माकं जिनसेनयोग्यगणिमिः सामन्तभदैस्तथा . , सिद्धान्त गुणमनाममुनिमिमकलको परे। श्रीसपिडिजनामधेयविबुधराशाघरैग्विर--- स्वव्हवा रचयामि धर्मसिकं शाशं विवर्णात्मकम् ॥ • इस वाक्यमें जिन आचायोंके अनुसार कथन करनेकी प्रतिज्ञाकी गई है उनमें 'मशफाक' का भी एक नाम है। इन महाकालको अकलंक-प्रविधपा के पतीको हो अभिप्राय जान पता है. राजवार्तिक के कर्ताका नहीं क्योंकि सोमसेवत्रिषाचारमें बिस प्रकार 'जिनसेन' आदि दूसरे भाषाओं के पाक्योंका सोख पाया जाता है उस प्रकार राजवातिकके की भाकलंकववके पनाये हुए किसी भी अन्यका प्रायः कोई
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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