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________________ सपथमें अमितगत बाचार्य, अपनी सत्ता प्रकट करते हुए, सिख है'चोपर्य गावर देखके धारा परीक्षा दिना गया या सम पडरमासे से परीक्षा दिला पासकता है। जिसको गवराय नमसनेमें समर्थ है या इसे धषक मंगकर सकता है। इसके बाद सारे परमें लिया है परन्तु विज्ञान सुनीधरने विस धर्ममें प्रमेक करके उसके प्रवेशमार्गको सरल र दिया है उसमें मुमा मेसे मूर्खका प्रवेश हो सकता है क्योंकि पासूचीस लिने पाने पर पुकामपि का रस रोग मी प्रमेश करते देखा जाता है। पाकर देखा, सी बच्ची फि बोराना ममतामय भाष है। कहा मूलांका यह भाव, और कहां उसको दुधकर अपनी प्रतिमानेवालेका उपयुक महाजर में समक्षवा बदि परसागरजी इसी प्रकारका कोई वा भाष प्रमा करते वो उनकी शानमें शक भी फर्कममाता। परन्तु मालम होता है आपमें बी भी उदारता नही थी और खमी वासने, धार होते हुए भी, लाँकी छविको अपनी कति बनाने मसाधु कार्य किया है!! इसी बद पर बार मी कितने ही अन्य खेताम्बर सवार पाली वा मईपाली पाए पावे, बिन सकी आँच, परीक्षा उषा समायोचना होने की लत है। से. सत्रदायक निम्मका लिामाको बागे भाकर इसके लिये खास परिणम करवा चाहिये और पैडे प्रन्योंकि विषय वपापडस्वितिको प्रमाबके सामने रखना चाहिये। ऐसा किया पाने पर विचारला लिया, कि पाव होगा गौरमासाम्प्रदायिकता तथा मन्त्री प्रकार हो सकेगी बोन धमाकी प्रमाविको पके हुए है। लन्द । पपई। . मगत सन् १९१७)
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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