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________________ समर्थन ही होता है। मापने एक ' भावार्थ सगाकर उसे गले दतारने की चेष्टा की है और उसमें बालवधर्म के अनुसार धर्मपी, भोगपती, प्रथम विवाह क्ष विवाह, दूसरा विवाह काम्य विवाह,साय खी के होते हुए अपर्णा घी से धर्म कृत्य न कराये जायें, बादि कितनी ही बातें लिखी और कितने ही निरर्थक तथा अपने विरुद्ध वारस मी उदयुत किये परन्तु बहुत कुछ सर पटकने पर भी भाप गावष ऋषि का तो क्या दूसरे भी किसी हिन्दू ऋषि का कोई ऐसा वाक्य उधृत नहीं कर सके जिससे पुरुषों के पुनविवाहविषयक स्वयंभू अधिकार का विरोष पाया जाय। और इसलिये भापको यह कल्पना करते ही बना कि "कोई बामण ऋषि दो विवाहों को भी धर्प विवाह स्वीकार करते हैं और तृतीय विवाह का निक्ध करते हैं । वन संभव है किगालव ऋषि दूसरे विवाह का.मी निषेध करते हों।" इतने पर भी भाप पक्ष में लिखते हैं"जो लोग इस खोक से वियों का पुनर्विवाहमर्ष निकालते हैं या विकृत अयुहै। क्योंकि यह वर्ष स्वयं मामयसम्प्रदाय के विकर पड़ता है।" यह धमाकी पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है। यह ग्रामणसम्प्रदाय के क्याविरुद्ध पड़ता है उसे आप दिसबा नहीं सके और न दिखला सकते हैं। आपकाइस विषय में ब्रामण सम्प्रदाय की दुहाई देना उसके साहिल की कोरी अनभिज्ञता को प्रकट करना अथवा मोचे भाइयों को फंसाने के लिये व्यर्थ का जाल रचना है । मन्तु । इस सब विवेचन पर से हदय पाठक सहन है। में इस बात पर अनुभव कर सकते हैं कि महारानी ने मपरिपाका लियों के लिये मी-- मिनमें पिवार भी शामिल जान पड़ती है-ममविवाह की साफ व्यवस्था की और सेनीवी बैसे पंडितों ने उसे अपनी चित्रपिके
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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