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________________ [१४] पूरा करने की व्यवस्था देते हैं ! * आपको यह भी बयान नहीं रहा कि तीन दिन तक चाराव के वहाँ और पड़े रहने पर बेटी वाचे का कितना खर्च बढ़ जायगा और साथ ही बासतियों को भी अपनी आर्थिक हानि के साथ साथ कितना कष्ट उठाना पड़ेगा !!-यह भी जो बहुदन्यविनाश का ही प्रसंग था और साथ ही यह भी प्रारम्भ हो गया था जिसका कोई खयाब नहीं रखा गया और न माप को यही ध्यान भाया कि जिस ब्रह्मसूरि-त्रिवर्णाचार से हम पह पद्य उठा कर रख रहे हैं उसमें इसके ठीक पूर्व ही ऐसे अवसरों के लिये भी सवाशौच की व्यवस्था की है-अर्थाद, लिखा है कि उस पर तथा कन्या के लिये बिसका विवाहकार्य प्रारम्भ हो गया हो, उन लोगों के लिये जो होम श्राद्ध, महादान तथा तीर्थयात्रा के कार्यों में प्रवत रहे हों और उन ब्रह्मचारियों के लिये जो प्रायश्चिचादि नियमों का पालन कर रहे हों, अपने अपने कार्यों को करते हुए किसी सूतक के उपस्थित हो जाने पर सधः शौच की व्यवस्था है + | अस्तु महारफनी को इस विषय का ध्यान अथवा खयाल रहा हो या न रहा हो और वे भूल गये हों या मुखा गये हों परंतु यथा:विवाहहोमे प्रकान्ते कन्या यदि एजखना। . नियत्रं कम्पनी स्माता पृथक्शय्यासनाशगौ ॥ १०६ ।। चतुर्थेऽभनि संस्खाता तस्मिभनौ यथाविधि । विवादहोमं कुर्यातु कन्यापानाधिक वया ॥ १० ॥ *यंथा: अपक्रान्तविवाहस्य परस्थापि त्रियस्तथा। होमनाथमहावानतीर्थयात्रामवर्तिनाम् ॥ - प्रायविवाहिनियमवादिनी ब्रह्मचारियाम् ! इस्लेषां खखकत्येषु सपा गौच लिपितम् ॥१०॥
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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