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-तके विद्यार्थियों, पण्डितों तथा शानियों का ध्यान इन लेखमालाओंक द्वारा सुखनात्मक पथतिकी भोर माकर्षित होना चाहिए और उन्हें प्रत्येक विषयका अध्ययन
म परिसमस करनेकी पादत डालनी चाहिए। ये परीक्षा लेख पताते है कि परिश्रम करना किये कहते हैं। . अमी बरूरत है कि और अनेक विद्वान्, स मागेपर काम करें। मधारकोंकि रखे हुए फयानन्य और परिवमन्य बहुत अधिक है। उनका मी पारीकीसे अध्ययन किया जाना चाहिए और जिन प्राचीन अन्योंकि भाषासे वे किये गये हैं, उनके साथ उनका मिलान किया जाना चाहिए। मधारकोंने ऐसी भी पीसों कपायें स्वयं गड़ी है बिना कोई मूल नहीं है।
मन्तमें मुहबर पण्डित जुगल किशोरणीको उनके इस परिश्रमके लिए अनेकशः धन्यवाद देकर मैं अपने इस बजव्यको समाप्त करता हूँ। सोमसेन-त्रिवर्णाचारकी यह परीक्षा उन्होंने मेरे ही मामह और मेरी ही प्रेरणासे लिखी है, इसलिए मैं अपनेको सौभाग्यशाली समझता है। क्योंकि इससे जैनसमाबका जो मियाभाव हटेगा, उसका एक छोटासा निमित्त मैं भी हूँ। इति ।
मुलण्ड (गा) । मामकृष्ण २,स. १९८५ ,
नाथूराम प्रेमी।