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________________ अर्षात्-सामने सर्व देव, दाहिनी ओर व्यंतर (पितर) और पीठ पिछाडी सर्व ऋषि खरे हैं अत: बॉई तरफ कुरवा करना चाहिये। और इस तरह पर,यह सूचित किया है कि मनुष्य को तीन तरफ से देव, पितर तथा ऋषिगण घेरे रहते हैं, कुरला कहीं उनके ऊपर न पड़नाय उसीके लिये यह अहतियात की गई है। परंतु उन लोगों का यह घेरा करने के बात ही होता है या स्वामाविक रूप से हरवत रहता है, ऐसा कुछ सूचित नहीं किया । यदि कुरले के वक्त ही होता है तो उसका कोई कारणविशेष होना चाहिये। क्या कुरले का समाशो देखने के लिये ही ये सब लोग उसके इरादे की खबर पाकर जमा हो जाते हैं ! यदि ऐसा है तब तो ये लोग आकाश में कुरला करने वाले के सिर पर खड़े होकर भी तमाशा देख सकते हैं और छोटों से बच सकते हैं। उनके लिये ऐसी व्यवस्था करने की बरूरत ही नहीं यह निरर्थक जान पड़ती है । और यदि उनका घेरा बराबर में हरवक्त बना रहता है तब तो बड़ी मुशकिल का सामना है पर तो उन बेचारों को बड़ी ही कवाइद सी करनी पड़ती होगी, क्योंकि मनुष्य बन्दी २ अपने मुख तथा भासन को इधर से उधर बदलता रहता है, उसके साथ में उन्हें भी जल्दी से पैतरा बदन कर बिना इच्छा भी घूमना पड़ता होगा !! और उपर मनुष्यों का थूकना तथा नाक साफ करना भी सब इधर उधर नहीं बन सकेगा, जिसके लिये कोई व्यवस्था नहीं. की गई। यह मल भी ले कुरले के जल से कुछ कम अपवित्र नहीं है । खैर, इसकी व्यवस्था भी हो सकेगी और यह मल मी बॉई भोर फेंका जा सकेगा, पर मूत्रोसर्ग के समय-जो उत्सर्ग के सामने की ओर पूर्व की ओर सारे देव रहते है तो फिर इस ग्रंथ में ही पूर्व की ओर मुँह करके मलत्याग करने को क्यों कहा गया है । पया कुरक्षा भूष की धार से भी गया बीता है।
SR No.010629
Book TitleGranth Pariksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1928
Total Pages284
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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