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कुन्दकुन्द-श्रावकाचार ।
जोनियोंको भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका परिचय देनेकी जरूरत नहीं
है । तत्त्वार्थसूत्रके प्रणेता श्रीमदुमास्वामी जैसे विद्वानाचार्य जिनके शिष्य कहे जाते हैं, उन श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजके पवित्र नामसे जैनियोंका बच्चा बच्चातक परिचित है । प्रायः सभी नगर और ग्रामोंमें जैनियोंकी शास्त्रसभा होती है और उस सभामें सबसे पहले एक बृहत् मंगलाचरण (ॐकार ) पढ़ा जाता है, जिसमें 'मंगलं कुन्दकुन्दार्यः' इस पदके द्वारा आचार्य महोदयके शुभ नामका बराबर स्मरण किया जाता है। सच पूछिए तो जैनसमाजमें, भगवान् कुन्दकुन्दस्वामी एक बड़े भारी नेता, अनुभवी विद्वान् और माननीय आचार्य हो गये हैं । उनका अस्तित्व विक्रमकी पहली शताब्दीके लगभग माना जाता है । भगवत्कुंदकुंदाचार्यका सिक्का जैनसमाजके हृदय पर यहाँतक अंकित है कि बहुतसे ग्रंथकाराने और ख़ासकर भट्टारकोंने अपने आपको आपके ही वंशज प्रगट करनेमें अपना सौभाग्य और गौरव समझा है । बल्कि यों कहिए कि बहुतसे लोगोंको समाजमें काम करने और अपना उद्देश्य फैलानेके लिए आपके पवित्र नामका आश्रय लेना पड़ा है। इससे पाठक समझ सकते हैं कि जैनियोंमें श्रीकुन्दकुन्द कैसे प्रभावशाली महात्मा हो चुके हैं। भगवत्कुंदकुंदाचार्यने अपने जीवनकालमें अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रंथोंका प्रण-. यन किया है । और उनके ग्रंथ, जैनसमाजमें बड़ी ही पूज्यदृष्टि से देखे जाते हैं । समयसार, प्रवचनसार और पंचास्तिकाय आदि ग्रंथ उन्हीं ग्रंथोंमेंसे हैं, जिनका जैनसमाजमें सर्वत्र प्रचार है । आज इस लेखद्वारा जिस ग्रंथकी परीक्षा की जाती है। उसके साथ भी श्रीकुंदकुंदाचार्यका नाम लगा हुआ है । यद्यपि इस ग्रंथका, समयसारादि ग्रंथोंके समान, जैनियोंमें सर्वत्र प्रचार नहीं है तो भी यह ग्रंथ जयपुर, बम्बई और महासभाके सरस्वती भंडार आदि अनेक भंडारोंमें पाया जाता है।