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दर्शनसार।
या अपने अनुयायी बनाकर वह मरा और नरकमें गया। (इसमें बौद्धके क्षणिकवादकी ओर इशारा किया गया है । जब संसारकी सभी वस्तुयें क्षणस्थायी है, तब जीव मी क्षणस्थायी ठहरेगा और ऐसी अवस्थामें एक मनुष्यके शरीर में रहनेवाला जीव जो पाप करेगा उसका फल वही जीव नहीं, किन्तु उसके स्थान पर आनेवाला दूसरा जीव भोगेगा।)
__ श्वेताम्बरमतकी उत्पत्ति । छचीसे वरिससए विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । सोरडे वलहीए उप्पण्णो सेवडो संघो ॥११॥
पट्त्रिंशत्सु वर्षशते विक्रमराजस्य मरणप्राप्तस्य । सौराष्ट्र वल्लम्यां उत्पन्नः सितपटः संघः ॥ ११॥ अर्थ-विक्रमादित्यकी मृत्युके १३६ वर्ष वाद सौराष्ट्र देशके वल्लभीपुरमें श्वेताम्बरसंघ उत्पन्न हुआ। सिरिभद्दबाहुगणिणो सीसोणामेण संति आइरिओ। तस्स य सीसो दुट्ठो जिणचंदो मंदचारित्तो ॥ १२॥
श्रीभद्रवाहुगणिनः शिष्यो नाम्ना शान्ति आचार्यः । तस्य च शिष्यो दुष्टो जिनचन्द्रो मन्दचारित्रः ॥ १२ ॥ १ गुजरातके पूर्व में भागा नगरके निकट यह प्राचीन शहर वसा हुआ था। बहुत समृद्धशाली था। ईस्वी सन् ६४० में चीनी यात्री हुएनसंगने इसका उल्लेख किया है। उस समयतक यह मावाद था । काठियावाड़का 'वला' नामक प्राम जहाँ है, कोई कोई कहते हैं कि वहीं पर यह वसा हुआ था। खेताम्बर सूत्रोंका सम्पादन भी यहीं हुआ था।