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________________ लेखककी अन्य ऐतिहासिक पुस्तकें । १ विद्वद्रत्नमाला ( प्रथम भाग)। इसमें आचार्य जिनसेन, गुणभद्र, आशाधर, वादिराज, मल्टिपेण, अमितगति और समन्तभद्र इन आचायाँका इतिहास बढ़ी सोजके साथ, मेक्ढों प्रमाण देकर लिखा गया है। इसमें ऐसी अनेक नई बातों पर प्रकाश टाला गया है, जो अभीतक किसीको भी मालूम नहीं थीं । पृष्ठसरया १८०५ मूल्य आठ आने । २ विद्वद्रत्नमाला (द्वितीय भाग)। इसमें भट्टाकलंक, विद्यानन्दि, शुभचन्द्र, हस्तिमल्ल, वीरनन्दि, गाकटायन, विक्रम, मनकीर्ति आदि अनेक जनविद्वानोंका इतिहास बढ़े परिश्रमसे, निष्पक्ष होकर लिखा गया है । अभीतक छपा नहीं है । मूल्य लगभग बारह आने। ३ कर्नाटक जैनकवि । कर्नाटकमें कनडी भाषाके बड़े बड़े कवि और लेखक जैनधर्मके पालनेवाले हुए है। इस तरहके ७५ कवियोंका और उनके ग्रन्थोंका ऐतिहासिक परिचय इस पुस्तक्में दिया है। पृष्ठसख्या ३६ । मूल्य आधा आना। ४ हिन्दी जैनसाहित्यका इतिहास । इसमें प्रारभसे लेकर अबतकके जैनकवियों और उनके हिन्दी ग्रन्योंका परिचय दिया है और स्वतंत्रतापूर्वक जैनसाहित्यकी आलोचना की गई है । पुस्तक बडे परिश्रमसे और बड़ी खोजके साथ लिखी गई है। हिन्दीके प्रारंभिक रूप और इतिहासके विषयमें बहुतसे नवीन तथ्योंका उल्लेस क्यिा गया है। पृष्ठसंख्या १०० । मूल्य छह आने । मिलनेका पताजैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, हीगवाग, गिरगॉव-वम्बई ।
SR No.010625
Book TitleDarshansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1918
Total Pages68
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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