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दर्शनसार।
लकृत टीकाके चाथे अध्यायके प्रारममें दिगम्बर सम्प्रदायके (द्रविड संघको छोड़कर ) संघोंका इस प्रकार परिचय दिया है:
" दिगम्बराः पुनग्न्यिलिगाः पाणिपात्राश्च । ते चतुर्धा, काष्ठासंघ-मूलसंघमाथुरसंघ-गोप्यसंघभेदात् । काष्ठासंघ चमरीबालैः पिच्छिका, मूलसंघे मायूरपिच्छै. पिच्छिका, माथुरसंघे मूलतोऽपि पिच्छिका नाहताः, गोप्या मयूरापिच्छिकाः। आधास्त्रयोऽपि संघा वन्यमाना धर्मवृद्धिं भणन्ति, स्त्रीणां मुक्तिं केवलिनां भुक्तिं सद्रतस्यापि तचीवरस्य मुक्ति चन मन्वते ।गोप्यास्तु वन्यमाना धर्मलाभ भणन्ति। स्त्रीणां मुक्ति केवलिनां भुक्तिं च मन्यन्ते । गोप्या यापनीय इत्यप्युच्यन्ते । सर्वेपां च भिक्षाटने भोजने च द्वात्रिंशदन्तराया मलाश्च चतुर्दश वर्जनीयाः । शेपमाचारे गुरौ च देवे च सर्व श्वेताम्वरैस्तुल्यम् । नास्ति तेषां मिथः शास्त्रषु तकेंपु परो भेदः ।" __ अर्थात् “ दिगम्बर नग्न रहते है और हाथमें भोजन करते है। इनके चार भेद है । काठासंघ, मूलसघ, माथुर, गोप्य । इनमेंसे काष्ठासंघके साधु चमरीके बालोंकी और मूलसंघ तथा यापनीय संघके साधु मारेके पंसोंकी पिच्छिका रखते हैं। पर माथुरसंघके साधु पिच्छिका बिलकुल ही नहीं रखते है। पहले तीन वन्दना करनेवालेको 'धर्मवृद्धि' देते है और स्त्रीमुक्ति, केवालमुक्ति , तथा वनसंहित मुनिको मुक्ति नहीं मानते हैं । गोप्यसंघवाले 'धर्मलाम' कहते हैं और स्त्रीमुक्ति केवलिमुक्तिको मानते है । गोप्य संघको यापनीय भी कहते है। चारों ही संघके साधु मिक्षाटनमें और भोजनमें ३२ अन्तराय और १४ मलोंको टालते हैं। इसके सिवाय शेष आचारमें तथा देवगुरुके विषयमें ये सव श्वेताम्बरोंके ही तुल्य हैं। उनमें शास्त्रमें और तर्कमें