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दर्शनसार ।
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यदि यह कहा जाता कि चौथा गुणवत उसने ओर माना, तो ठीक भी होता, पर इसमें छठा गुणवत माननेको कहा है । क प्रतिकी टिप्पणीमें लिखा है कि रात्रिभोजनत्याग नामक छट्टे व्रतका विधान किया, पर यह भी अस्पष्ट है । इसके सिवाय यह भी लिखा है कि कुमारसेनने आगम, शास्त्र, पुराण, प्रायश्चित्तादि ग्रन्थ जुढे बनाये और अन्यथा बनाये |
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द्राविड संघको ' द्रमिल संघ ' भी कहते है । पुन्नाट संघ भी शायद इसीका नामान्तर है । हरिवंशपुराणके कर्त्ता जिनसेन इसी पुन्नाट संघमें हुए हैं । नाट शब्दका अर्थ कर्णाट देश है, इस लिए पुनाट ' का अर्थ द्रविड़ देश होगा, ऐसा जान पड़ता है । हरिखंशपुराणके प्रारंभ में पूज्यपादस्वामीके बाद वज्रनन्दिकी भी इस प्रकार स्तुति की गई है:
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वज्रसूरेर्विचारण्यः सहेत्वोर्वन्धमोक्षयोः ।
प्रमाणां धर्मशास्त्राणां प्रवक्तृणामिवोक्तयः ॥ ३२ ॥ इसमें आचार्य वज्रनन्दिके किसी ग्रन्थको जिसमें बन्धमोक्षका सहेतुक वर्णन है, धर्मशास्त्रोंके वक्ता गणधरोंकी वाणीके समान प्रमाणभूत माना है । ये वञ्चनन्दि पूज्यपादके ही शिष्य है जिन्हें देवसेन सूरिने द्राविड संघका उत्पादक बतलाया है । हरिवंशके कर्ता उन्हें गणधरके समान प्रमाणभूत मानते हैं, इसीसे मालूम होता है कि वे स्वय द्राविड संघी थे | त्रैविद्यविश्वेश्वर श्रीपालदेव, वैयाकरण दयापाल, मतिसागर, | स्याद्वादविद्यापति वादिराजसूरि आदि बड़े बड़े विद्वान इस संघमें हुए है। हरिवंशपुराणके कर्ताने अपने पूर्वके आचार्यों की एक लम्बी नामावली दी है जिसमें कई बड़े बड़े विद्वान जान पढ़ते हैं । इस संघमें भी कई गण और गच्छ हैं । ' नन्दि' नामक अन्वयका, 'अरुड्डल,
' एसेगित्तर ' इन दो गणका और 'मूलितल' नामक गच्छका यत्र
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