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________________ स्वस्ति स्वप्न ( ४९ ) असंयुक्त व्यंजनों से पहले ऊ की जगह ओ होता है --- श्वपाक सोपाक (अर्द्धमागधी सोवाग ) (३) कुछ सम्प्रसारण विचित्र भी होते हैं, जैसे सं० 'द्वेष' और 'दोष' दोनों के प्रतिरूप पालि में 'दोस' में मिल गये हैं । (आ) अक्षर-संकोच (१) अय और अव क्रमशः ए और ओ हो जाते हैं । बीच में स्वराघात के कारण क्रमशः अयि, ऐ, अवु, औ अस्वस्थाओं में होकर ये परिवर्तन होते हैं, ऐसा कहा जा सकता है । जयति अध्ययन मोचयति कथयति अवधि प्रवण लवण (२) अय और आय का आ हो जाता है। प्रतिसंलयन स्वस्त्ययन कात्यायन मौद्गल्यायन ४ (३) आव का ओ हो जाता है । अतिधावन सुत्थि — सोत्थि सुपिन -सोप्प (४) अवा का आ हो जाता है । यवागू (५) अयि और अवि ए हो जाते हैं- आश्चर्य जेति ( जयति भी ) अज्न मोचेति कथेति ओधि पोण लोण पटिसल्लान सोत्थान कच्चान ( कच्चायन भी ) मोग्गलान ( मोग्गल्लायन भी अतिधोन यागु अच्छयिर, अच्छरिय से होकर अच्छेर
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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