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( ६४२ ) व्याख्यं, (२४६) वुत्तोदय, (२४७) वुत्तोदय-टीका, (२४८) मिलिन्द-पह, (२४९) सारत्थ संगह, (२५०) अमरकोस निस्सय, (२५१) पिंडो निस्सय, (२५२) कलाप निस्सय, (२५३) रोगनिदान व्याख्यं, (२५४) दब्रगण टीका, (२५५) अमरकोस, (२५६) दंडि टीका, (२५७) दंडिटीका (द्वितीय), (२५८) दंडि-टीका (तृतीय), (२५९) कोलध्वज टीका, (२६०) अलंकार, (२६१) अलंकार-टीका, (२६२) भेसज्जमंजूसा, (२६३) युद्धजेय्य, (२६४) यतन प्रभा टीका, (२६५) विरग्ध, (२६६) विरग्ध-टीका, (२६७) चूला मणिसार, (२६८) राजमत्तन्त टीका, (२६९) मृत्युवञ्चन, (२७०) महाकाल चक्क, (२७२) महाकालचक्क-टीका, (२७२) परविवेक, (२७३) कच्चायन रूपावतार, (२७४) पुम्मरसारी, (२७५) तक्तवावतार (तत्त्वावतार), (२७६) (२७७) न्याय बिन्दु, (२७८) न्यायबिन्दु टीका, न्यायबिन्दु टीका, (२७९) हेतुबिन्दु, (२८०) हेतुबिन्दु टीका, (२८१) रिक्ख- णिय यात्रा, (२८२) रिक्खणिय-यात्रा, टीका, (२८३) वरित्तरताकर (वृत्त रत्नाकर,) (२८४) श्यारामितकब्य, (२८५) युत्तिसंग्रह (२८६) युत्ति संगह टीत्र, (२८७) सारसंगह निस्सय, (२८८) रोग यात्रा निस्सय, (२८९) रोग निदान निस्सय (२९०) सद्दत्थभेद चिन्तानिस्सय, (२९१) पारानिस्सय, (२९२) श्यार मितकव्य-निस्सय, (२९३) वृहज्जातक-निस्सय, (२९४) रत्तमाला, (२९५) नरयुत्ति संगह। रामण्य-देश (पेगू-बरमा) के राजा धम्मचेति का १४६७ ई० का कल्याणी अभिलेख
कल्याणी (पेगू-बरमा)-अभिलेख रामण्य-देश (पेगू-बरमा) के राजा धम्मचेति ने सन् १४६७ ई० में अंकित करवाया था। वरमा में वौद्ध धर्म के विकास, विशेषतः भिक्षु-संघ की परम्परा, पर इस अभिलेख से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। भिक्षुओं के उपसम्पदा-संस्कार की विधि एवं विहार-सीमा के निर्णय करने के विषय पर राजा धम्मचेति के समय में बरमी भिक्षु-संघ में विवाद उपस्थित हो गया । इस विवाद का निश्चित समाधान करने के लिए प्राचीन वौद्ध साहित्य, विशेषतः विनय पिटक और उसकी अट्ठकथा एवं उपकारी साहित्य