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हार करेंगे।"१ सम्राट अशोक और उनके उच्च कर्मचारी समय समय पर पर जनता के सम्पर्क में आने और उसके दर्शन करने के लिये (जानपदस जनस दमनं) राज्य का दौरा (अनुसयान) करते थे ।२ अशोक चाहता था कि कानून के भय से हो लोग सदाचार का आचरण न करें, बल्कि उनके आन्तरिक जीवन को इस प्रकार शिक्षित किया जाय जिसमे वे पाप की और प्रवण ही न हों। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये उसने ‘महामात्र नामक उच्च कर्मचारी नियुक्त किये थे और उन्हें अनेक विशेषाधिकार भी दिये थे। इन कार्यों के अलावा अगोक ने अपने विशाल साम्राज्य में स्थान स्थान पर धर्मशालाएं वनवाई, मनुष्यों और पशुओं को आराम देने के लिये छायादार पेड़ लगवाये, आम्र-वाटिकाएँ वनवाई और पानी के कुंड बनवाये ।४ सब से बड़ा काम उसने औषधालय और चिकित्सालय खोलने का किया । अपने दूसरे शिलालेख में अशोक ने कहा है कि उसने रोगी मनुष्यों और पशुओं के लिये अलग अलग चिकित्सालय स्थापित किये है।" यह काम उसने न केवल अपने ही राज्य में किया है, बल्कि विदेशों में भी अपने धर्मोपदेशकों द्वारा करवाया है। जहाँ-जहाँ मनुष्यों और पशुओं के प्रयोग में आने वाली औषधियों और औषधोपयोगी कन्द-मूल फल नहीं है, वहाँ-वहाँ वे भिजवाये गये है और लगवाये गये है। कहने की आवश्यकता
१. शिलालेख २ । २. शिलालेख ८ (गिरनार); शिलालेख १२ भी । ३. शिलालेख ५, स्तम्भ लेख ७; धर्म महामात्रों के क्या कर्तव्य थे, इसके लिए
देखिये "अशोक की धर्मलिपियाँ" प्रथम भाग (काक्षी नागरी प्रचारिणी सभा)
पृष्ठ ५१-५२ । ४. स्तम्भलेख ७ । ५. द्वे चिकीछा कता मनुस चिकीछा च पसुचिकीछा च । शिलालेख २ । ६. शिलालेख १३ एवं २ । ७. ओसुढानि च यानि मनसोपगानि च पसोपगानि च यत यत नास्ति सर्वत्र
हारापितानि च रीपापितानि च । मूलानि च फलानि च यत नास्ति सर्वत्र हारापितानि रोपापितानि च । शिलालेख २ ।