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जाता है, वहाँ इस नियम के अनुसार कहीं कहीं उसके दीर्घ स्वर के स्थान पर सानुनासिक ह्रस्व स्वर भी हो जाता है । इस नियम का कारण यह है कि हम्ब सानुनामिक स्वर में भी दीर्घ स्वर के समान दो वस्व मात्रा-काल होते हैं। उदाहरण-- मत्कुण
माकुण के बजाय मंकुण शर्वरी
मावरी (सब्बरी) के बजाय मंवरी शुल्क
मूक (सुक्क) के बजाय मुंक (४) उपर्युक्त नियम का विपर्यय भी देखा जाता है, अर्थात् संस्कृत अनुनामिक ह्रस्व स्वर का परिवर्तन पालि में दीर्घ स्वर भी हो जाता है।
सिंह . विंशति
वीमति, वीस
सीह
(५) कभी-कभी संस्कृत में संयुक्त व्यंजन से पूर्व आने वाला दीर्घ स्वर पालि में भी बना रहता है। ऐसा अधिकतर सन्धियों में होता है, जैसे माज्ज= मा+अज्ज; यथाज्ज्झामयेन = यथा+अज्ज्झासयेन, आदि ।
(६) पालि में स्वर-भक्ति का प्रयोग प्रचुरता से मिलता है। इसका विवेचन हम आगे करेंगे। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिये कि जब स्वर-भक्ति के कारण मंयुक्त व्यंजन असंयुक्त किये जाते हैं, तो संयुक्त व्यंजन से पहले आने वाला दीर्घ स्वर पालि में ह्रस्व कर दिया जाता है। उदाहरण
सूर्य
प्रकीर्य मौर्य
सुय्य के बजाय सुरिय पकिरिय मोरिय
चैत्य
चेतिय
(७) विवृत् स्वर ई और ऊ पालि में क्रमशः ए और ओ हो जाते है ।
उदाहरण -
ईदृश् ईदृक्षा
एदिस (एरिम) एदिसक एदिक्ख (एरिक्ख)
ईदृशा