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( ५८७ ) नित्ज़ ने यह स्वीकार नहीं किया कि बुद्धघोष के उपर्युक्त शब्द 'अनागतवंस' मे ही उद्धृत किये गये हैं । ' अतः उनको 'अनागतवंस' की इतनी प्राचीनता मान्य नहीं है । चूंकि बुद्धघोष ने अपने उपर्युक्त शब्दों में केवल बुद्ध मैत्रेय के माता-पिता के नाम का ही उल्लेख किया है, अतः यह कोई इतना विशेषतापूर्ण सैद्धान्तिक या अन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य नहीं है कि बुद्धघोष जैसे आचार्य को 'अनागतवंस' से इसका उद्धरण देने की आवश्यकता पड़ती। यह तो बौद्ध परम्परा की एक अति सामान्य मान्यता थी जो 'अनागतवंस' के रचयिता के समान बुद्धघोष को भी मालम हो सकती थी, फिर कालानुक्रम से कोई किसी का पूर्ववर्ती क्यों न रहा हो, शब्द-साम्य इस सम्बन्ध में अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता। अतः हम बुद्धघोष के उपर्युक्त शब्दों को 'अनागतवंस' से उद्धरण मानने को बाध्य नहीं । 'गन्धवंस' में 'अनागतवंस' के रचयिता का नाम कस्सप (काश्यप) कहा गया है । २ 'गन्धवंस' के वर्णन के अनुसार 'अनागतवंस' पर एक अट्ठकथा भी लिखी गई, जिसके लेखक उपतिस्स (उपतिष्य) नामक भिक्षु थे। चूंकि कस्सप और उपतिस्स नाम के अनेक भिक्षु अनेक समयों में लंका और बरमा में हो गये हैं, अतः निश्चित रूप से यह कह सकना कठिन है कि कौन से कस्सप और उपतिस्स क्रमशः 'अनागतवंस' के रचयिता और अट्ठकथाकार हैं। ज्ञान की वर्तमान अवस्था में यही जानना पर्याप्त है कि डा० गायगर ने 'अनागतवंस' के रचयिता कस्सप
और 'मोहविच्छेदनी' और 'विमतिच्छेदनी' नामक ग्रन्थों के रचयिता कस्सप को एक ही व्यक्ति माना है । तेलकटाहगाथा ___९८ गाथाओं में लिखी हुई एक परिष्कृत, प्रौढ़ और रमणीय काव्य-रचना है। तेलकटाहगाथा' का अर्थ है (खौलते हुए) तेल की कढ़ाई में लिखी हुई गाथाएँ
१. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ २२१, पद-संकेत १ । २. पृष्ठ ६१, ७२ (जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी १८८६ में प्रकाशित
संस्करण) ३. पालि लिटरेचर एंड लेंग्वेज, पृष्ठ ३६ ४, ई० आर० गुणरत्न द्वारा जर्नल ऑव पालि टेक्स्ट सोसायटी १८८४ में रोमन