________________
( ५८२ ) धर्मोपदेशकों को देश-विदेश में भेजने का भी विवरण यहाँ किया गया है । 'मासनवंस' के वर्णनानुसार तृतीय संगीति के बाद सुवर्णभूमि (बरमा) में धर्मोपदेशकों के जाने से पहले भी स्वयं मोग्गलिपुत्त तिस्स वहाँ धर्मोपदेश करने गये थे, जो उतना पूर्व परम्परा पर आधारित नहीं है । इसी प्रकार कुछ अन्य भी बातें उन्होंने बरमी बौद्ध संघ के गौरव को बढ़ाने वाली कहीं हैं, जो उतनी इतिहास पर आधारित नहीं हैं । बरमी राजा सिरिमहासीह सूरसुधम्मराजा (श्री महासिंह शूर सुधर्मराज) के समय में भिक्षु-संघ में हुए पारुपन (चीवर को दोनों कन्धों को ढंककर ओढ़ना) और एकंसिक (एक कन्धे को खोलकर रखते हुए चीवर को ओढ़ना) संबंधी विवाद हुआ जिसका निर्देश इस ग्रन्थ में किया गया है । इसी प्रकार विहार-सीमा संबंधी विवाद का उल्लेख किया गया है। संक्षेप में, बरमी बौद्ध धर्म के विकास एवं बरमी राजाओं और भिक्षु-संघ के पारस्परिक संबंध आदि को जानने के लिए 'सासन-वंस' का आज के विद्यार्थी के लिए भी प्रभूत महत्व हैं। बुद्ध-जीवनी और संगीतियों तथा अशोक के काल में मोगालिपुत्त तिस्स के द्वारा किये गये धर्म-प्रचार आदि के विवरण के लिए वह दीपवंस, महावंस तथा समन्तपासादिका आदि पर आधारित है, इसमें संदेह नहीं। तृतीय संगीति के बाद जिन जिन देशों में भारतीय बौद्ध भिक्षु उपदेश करने के लिए भेजे गये, उनके विवरणों में 'दीपवंस' और 'महावंस' की अपेक्षा यहाँ कुछ विभिन्नता भी है । उदाहरणतः अपरान्त राष्ट्र (अपरान्त-रट्ठ) को यहां इरावदी नदी का पच्छिमी भाग बतलाया गया है । उसी प्रकार महारट्ठ (महाराष्ट्र) को अहाँ स्थविर महाधर्मरक्षित उपदेशार्थ गये थे 'महानगर-राष्ट्र' (महानगर-रट्ठ) या स्याम वतलाया गया है। इसी प्रकार मज्झिम स्थविर को चीन-राष्ट्र में धर्म-प्रचार करते बतलाया गया है, जबकि 'दीप-वंस' और 'महावंस' के वर्णनानुसार वे 'हिमवन्त' प्रदेश के धम प्रचारक थे । इसी प्रकार कुछ अन्य भी विभिन्न वर्णन हैं, जो उतने प्रामाणिक नहीं माने जा सकते । बरमी भिक्षु-संघ के इतिहास की दृष्टि से इस ग्रन्थ का बड़ा महत्व है, इसमें सन्देह नहीं । १. देखिये विमलाचरण लाहा : हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ ५९२-५९३