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खीरं
( ४१ )
दीर्घ स्वर (आ, ई, ऊ) (१) पद के अन्त में या मंयुक्त व्यंजन से पूर्व की स्थिति को छोड़कर संस्कृत दीर्घ स्वर पालि में प्रायः सुरक्षित रहते हैं। उदाहरण संस्कृत
पालि काल
काल प्रहीण
पहीण क्षीरं
मूल या मूळ (२) पद के अन्त में जहाँ संस्कृत में दीर्घ स्वर होते हैं, पालि में वे ह्रस्व कर दिये जाते हैं। उदाहरण
देवानां गणनायां
गणनायं नदी
नदि (३) संयुक्त व्यंजन से पूर्व संस्कृत में दीर्घ स्वर होने पर पालि में उसका प्रतिरूपह्रस्व हो जाता है और उसके बाद भी संयुक्त व्यंजन रहता है। उदाहरण जीर्ण
जिण्ण मार्दवं
मद्दवं तीर्थ
तित्थं
देवानं
(४) संयुक्त व्यंजन से पूर्व संस्कृत में दीर्घ स्वर रहने पर कभी-कभी पालि में उसका प्रतिरूप भी दीर्घ ही बना रहता है और इस दशा में संयुक्त व्यंजन अमंयुक्त हो जाता है। उदाहरण लाक्षा
लाखा दीर्घ
दीघ ए और ओ रहने पर संयुक्त व्यंजन विकल्प से असंयुक्त होता है, अर्थात् कहींकहीं वह असंयुक्त होता है और कहीं-कहीं नहीं भी।