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( ५७६ ) पूर्ववर्ती बुद्धों का विस्तृत वर्णन नहीं किया गया है, किन्तु अन्य वर्णन प्रायः समान ही हैं । थूपवंस' में कथा का अन्त दुट्ठगामणि पर लाकर करदिया गया है जब कि 'दाठावंस' में वह लंकाधिपति कित्तिसिरि मेधवण्ण (कीर्ति श्री मेघवर्ण) तक चलती है। बुद्ध के दाँत के इतिहास के चारों ओर यहाँ बौद्ध धर्म के विकास के इतिहास का वर्णन किया गया है, जैसे “थूपवंस' में स्तूपों की कथा के चारों ओर । कलिंग के राजकुमार द्वारा लंका में युद्ध के दाँतों का लाया जाना और वहाँ कीर्ति श्री मेघवर्ण द्वारा उनका आदर-पूर्वक ग्रहण करना तथा अनुराधपुर में लंका के राजा, भिक्षु संघ और उपासक जनता के द्वारा उसकी पूजा किया जाना आदि तथ्यों का वर्णन इस ग्रन्थ की मुख्य विषय-वस्तु है । छकेसधातुवंस
'छकेसधातुवंस' १९ वीं शताब्दी की रचना है । यह किसी बरमी भिक्षु की रचना है, जिसके नाम का पता नहीं । इसमें भगवान बुद्ध के छ: केगों के ऊपर बनवाये हुए स्तूपों का वर्णन है। यह एक गद्य-पद्य मिश्रित रचना है और इसकी शैली सरल है । गन्वंस
'गन्धवंस' (ग्रन्थ-वंश) उन्नीसवीं शताब्दी में बरमा में लिखा गया। इतनी उत्तरकालीन रचना होते हुए भी इसी कोटि के अन्य वंश-ग्रन्थों के समान इसका अल्प महत्व नहीं है । पालि-साहित्य के इतिहास-लेखक के लिए तो यह एक बड़ा सहायक ग्रन्थ है । जैसा इसके नाम से विदित है, यह पालिअन्यों का इतिहास है। पालि ग्रन्थकारों और उनके ग्रन्थों का विवरण देना ही इसका मुख्य लक्ष्य है । पुस्तकों और उनके रचयिताओं की सूची, रचना-स्थान और रचना के उद्देश्य यहाँ दिये गये हैं । पहले त्रिपिटक का विश्लेपण दिया गया है । फिर ग्रन्थकारों को तीन श्रेणियों में
१. जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी १८८५ में मिनयेफ द्वारा सम्पादित । २. मिनयेफ द्वारा रोमन लिपि में जर्नल ऑव पालि टैक्स्ट सोसायटी, १८८६ में सम्पादित।