SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 591
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५७० ) १३ वी गताब्दी के आदिम भाग में हुई थी। तेरहवीं शताब्दी में ही इम ग्रन्थ का निहली रूपान्तर भी किया गया था।' जैसा उसके नाम से स्पष्ट है, 'थूपवंस' (स्तूपवंश) भगवान् बुद्ध की धातुओं पर स्मारक रूप से निर्मित 'स्तूपों' का इतिहास है । 'महापरिनिब्वाण-मुत्त में ही हमने देखा है कि भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद उनके शरीर के अवगिप्ट चिन्हों पर आठ बड़े स्तूपों का निर्माण किया गया था। ‘महावंस' के विवरण में भी हम देख चुके हैं कि किस प्रकार लंका के गजा दुट्ठगामणि ने महा स्तूप' आदि कई विशाल स्तुपों का निर्माण किया था। बुद्ध-परिनिर्वाण-काल मे लेकर दृट्टगामणि के समय तक निर्मित स्तुपों का क्रमवद्ध इतिहास वर्णन करना ही इस ग्रन्थ का विषय है। बुद्ध-भक्ति से प्रेरित हो कर लंका के अनेक राजाओं ने विशाल विहारों और स्तूपों का निर्माण कराया था, अतः उसके इतिहास में उनका भी एक विशेष महत्त्व है, इसमें सन्देह नही। स्तुपों का वर्णन करना ही केवल एक मात्र विषय थूपवंस' का नही है। उसने इसे आधार मान कर वौद्ध धर्म के पूरे इतिहास का ही वर्णन दुट्ठगामणि के समय तक कर दिया है। इस ग्रन्थ के तीन मुख्य भाग है । पहले भाग में गौतम बुद्ध के पूर्ववर्ती २८ बुद्धों का वर्णन किया गया है। बोधिमत्वों की चर्या का यह वर्णन प्रसिद्ध दीपंकर बुद्ध के ममय मे प्रारम्भ किया गया है, जैसा कि प्रायः अन्य सब वंश-ग्रन्थों ने भी किया है। दूसरे भाग में भगवान् गौतम बुद्ध की जीवनी है । जन्म से लेकर महापरिनिर्वाण तक भगवान् बुद्ध की जीवनी यहाँ बड़ी प्रभावशाली शैली में वर्णित की गई है। तीसरे भाग में, जिमे ग्रन्थ के गीर्षक' को देखते हुए उसका प्रधान अंश ही कहा जा सकता है, भगवान बुद्ध की धातुओं पर निर्मित स्तूपों का और उनके उत्तरकालीन इतिहास का १. कहीं कहीं इस सिंहली रूपान्तर की, पालि 'थूपवंस' से अल्प विभिन्नता भी ह। उदाहरणतः सिंहली 'थूपवंस' में 'धम्मचक्क पवत्तन-सुत्त' के उपदेश का विवरण है जब कि पालि 'थूपवंस' में केवल 'धम्मवक्कपवत्त-सुत्तो' कह कर उसका निर्देश कर दिया गया है। मौलिक रूप से दोनों समान है। देखिये 'महाबोधि' मई-जून १९४६, पृष्ठ ५७-६० में डा० विमलाचरण लाहा का 'थूपवंस' शीर्षक लेख।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy