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( ५५८ ) लंका-गमन का वर्णन बड़े चमत्कृत और काव्य-मय ढंग से 'महावंस'-काग्ने किया है "अन्तिम शय्या पर सोये हुए लोक-हितैषी मुनि (बुद्ध) ने लंका के हित के लिये जिनके बारे में भविष्यवाणी की थी, वही लंका के लिए दूसरे बुद्ध, लंकावामी देवताओं द्वारा पुजित, महेन्द्र, लंका के हितार्थ वहाँ पधारे।"१ चौदहवें अध्याय में उनके नगर-प्रवेश का वर्णन है। राजा देवानंपिय तिस्स को अपना परिचय देते हुए स्थविर महेन्द्र उन्हें कहते हैं “महाराज! हम धर्मराज (बुद्ध) के अनुयायी भिक्षु है। आप पर ही अनुग्रह करने के लिए हम भारत (जम्बुद्वीप) से यहाँ (लंका में) आये हैं।"३ पन्द्रहवें अध्याय से लेकर बीसवें अध्याय तक क्रमश: महाविहार-निर्माण, चैत्यपर्वत-विहार-प्रतिग्रहण, महाबोधि-ग्रहण, बोधिआगमन, एवं स्थविर-परिनिर्वाण आदि के वर्णन है, जो उस काल तक लंका म बौद्ध धर्म की प्रगति के चरण-चिन्ह हैं। इक्कीसवें अध्याय में देवानंपिय तिम्म के बाद और दुट्टगामणि से पहले आने वाले पांच राजाओं का वर्णन है। बाईसवे परिच्छेद से लेकर बनीसवें परिच्छेद तक अर्थात् पूरे ग्यारह परिच्छेदों में दुट्ठगामणि का इनिहाम वर्णित है, जब कि 'दीपवंस' में इस वर्णन को केवल १३ गाथाएँ दी गई हैं। दुट्ठगामणि ने किस प्रकार सैनिक बल का संग्रह कर द्रविड़ों का निष्कासन किया, यह हम पहले देख चुके है। युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद उसने बौद्ध धर्म की सेवा भी की और 'लोह-प्रासाद' 'महा-प्रासाद' नामक अनेक विहार और स्तूप भी बनवाये। इस विजेता राजा को इस प्रकार बुद्ध-धर्म का उपामक दिखा कर उसे एक राष्ट्रीय नेता और महापुरुष के रूप में 'महावंस' में चित्रित किया गया है और उसके आधार पर ग्यारह परिच्छेदों में एक महाकाव्य की ही सृष्टि कर दी गई है । बाईसवें अध्याय से ३२वें अध्याय तक की विषय-सूची उसके इन विभिन्न क्रियाकलापों को अच्छी प्रकार दिखा सकती है। वह इस प्रकार है (२२) ग्रामणी कुमार का जन्म (२३) योद्धाओं की प्राप्ति (२४) दो भाइयों का युद्ध (२५) दुष्ट ग्रामणी की विजय (२६) मरिचट्टि-विहारपूजा (२७) लोह-प्रासाद-पूजा, (२८) महास्तूप की साधन-प्राप्ति, (२९) १. महावंस १३३२१ २. महावंस १४१८; मूल पालि-पाठ इस प्रकार है-समणा मयं महाराज धम्म
राजस्स सावका। तवेव अनुकम्माय जम्बुदीपा इघागता।