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________________ ( ५५६ ) विषय का जो संक्षिप्त वर्णन कर दिया गया है, उसकी पृष्ठभूमि में वह स्पष्ट भी हो जायगा । 'महावंस' के प्रथम परिच्छेद में बुद्ध के तीन बार लङ्का में आगमन का वर्णन है। विशेष विस्तार के अलावा 'दीपवंस' के वर्णन से इसकी कुछ भी भिन्नता नहीं है । दूसरे परिच्छेद में भगवान् बुद्ध के पूर्वतम कुल-पुरुष महासम्मत का वंश-वर्णन है । यह भी 'दीपवंस' के आधार पर और उसके समान ही है। तीसरे, चौथे और पाँचवें परिच्छेदों में, क्रमशः प्रथम, द्वितीय और तृतीय धर्म-संगीतियों का वर्णन है। इन वर्णनों में कोई उल्लेखनीय विभिन्नता नहीं है। चूंकि इनका विस्तृत विवरण हम दूसरे अध्याय में दे चुके हैं, अतः फिर 'महावंस' के आधार पर उसी वर्णन को दुहराना उपयुक्त न होगा । अन्य स्रोतों से जो कुछ भी अन्य विभिन्नताएँ यहाँ हैं, वे वहीं (द्वितीय अध्याय में) निर्दिष्ट कर दी गई हैं । 'महावंस' के छठे परिच्छेद में विजय के लङ्का-आगमन का तथा सातव में उसके राज्याभिषेक का वर्णन है, जो भी 'दीपवंस' के इस सम्बन्धी वर्णन का विस्तृत और क्रम-बद्ध वर्णन ही है । आठवें, नवें और दसवें परिच्छेदों में विजय के वंशानुक्रम का वर्णन है, जिसमें अनेक राजाओं के नाम और शासन-काल आते हैं। ग्यारहवें अध्याय में देवानं पिय तिस्स के अभिषेक का वर्णन आता है। इसी समय बुद्ध-धर्म का प्रवेश लङ्का में होता है । 'दीपवंस' की अपेक्षा 'महावंस' में विस्तार बहुत अधिक है और उसकी सूचना भी उसकी अपेक्षा बहुत अधिक है । 'महावंस' के वर्णनानुसार “देवानं पिय तिस्स और धम्मासोक (धर्माशोक-अशोक राजा) दोनों राजा एक दूसरे को न देखने पर भी चिरकाल से मित्र चले आ रहे थे।"१ देवानं पिय तिस्म ने अपने राज्याभिषेक के समय अनेक नीलम, हीरे, लाल, मणि आदि की भेंट अशोक के पास भेजी। 'महावंस' के वर्णनानुसार “राजा (देवानंपिय तिस्स) ने अपने भानजे महारिष्ठ प्रधान मंत्री, पुरोहित,मन्त्री और गणक, इन चार व्यक्तियों को दूत बना, बहुमूल्य रत्नादि. . . . . . देकर सेना सहित वहाँ (पाटलि पुत्र) भेजा।"२ इन दूतों के मार्ग का वर्णन भी महावंस में किया गया है "जम्ब कोल (लङ्का के उत्तर में सम्बलहुरि नामक स्थान से नाव १. महावंस ११३१९ (भदन्त आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद) २. महावंस ११।२०-२२ (भदन्त आनन्द कौसल्यायन का अनुवाद)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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