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विभाग --- यहअभिवम्मसम्बन्धी रचना है । (८) विनया, विनिच्छय-टीका -- यह टीका बुद्धदत्त कृत 'विनय विनिच्छय' की टीका है । (९) उत्तरविनिच्छयटीकायह रचना बुद्धदत्त-कृत 'उत्तर विनिच्छ्य' की टीका है । (१०) सुमंगलप्पसादिनीयह रचना धम्मसिरि ( धर्म श्री ) - कृत खुद्दक - सिक्खा' की टीका है । इन रचनाओं के अलावा 'योग विनिच्छय', 'पच्चय संगह' जैसे अनेक ग्रंथ भी वाचि -- स्मर द्वारा रचित बताये जाते हैं । चूंकि 'वाचिस्सर' उपाधि धारी अनेक भिक्षु सिंहल के हो गये है, अतः निश्चयपूर्वक यह नहीं कहा जा सकता कि कौन सी रचनाएं किम 'वास्सिर' की है। फिर भी ऊपर जिन प्रधान दस रचनाओं का उल्लेख किया जा चुका है, वे सिंहलो भिक्षु सारिपुत के शिष्य 'वाचिस्सर' की ही मानी जाती है । सुमंगल-कृत तीन रचनाएं हैं. (१) अभिवम्मत्थविभावनी, जो अनिरुद्ध-कृत अभिवम्मन्थ-संग की टीका है (२) अभिधम्मत्थ विकासिनी, जो बुद्धदत अभिवमावतार की टीका है (३) सच्चसंखेप- टीका हैं --जो चूल धम्मपाल- कृत सच्चसंक्षेप की टीका है । ये तीनों ग्रंथ हस्त लिखित प्रतियों के रूप में सिंहल में सुरक्षित 'अभिधम्मत्य विभावनी' का महाबोधि प्रेस कोलम्बो से सन् १९३३ में सिंहली अक्षरों में प्रकाशन भी हो चुका है । सद्धम्म जोतिपाल या छपद का नाम सारिपुनके गिप्यों में विशेषतः प्रसिद्ध हैं । ये बरमा-निवासी भक्षु थे जिन्होंने बौद्ध धर्म को गिजार्थ सिंहल में प्रवास किया था । सारिपुतके शिष्यत्व में वे वहाँ ११७० मे ११८० ई० तक रहे । उनको ये रचनाएं अधिक प्रसिद्ध हैं, ( १ ) विनय समुट्ठान दीपनी ( विनय सम्बन्धी टीका- ग्रन्थ ( २ ) पातिमोक्ख विसोधनी ( ३ ) विनय गुत्य दीपनी विनय पिटकके कठिन शब्दोंकी व्याख्या ( ४ ) सीमालङ्कार संगटीका, जो वाचिम्मर-कृत सीमालंकार संगह की टोका है । इस प्रकार चार रचनाएं छपदकी विनय सम्बन्धी हुँ । अभिधम्म साहित्य को भी इन्होंने पाँच टीका-ग्रन्थ प्रदान किये हैं, ( १ ) मातिकत्थ दीपनी ( २ ) पठान - गणनानय ( ३ ) नामचार दीप (४) अभिवम्मत्थसंग्रह संखेप टीका, जो अनिरुद्ध-कृत अभिवम्मत्थ संगह की टीका है और (५) गन्धमार, जिसमें तिपिटक के ग्रन्थों का सार है । धम्मकित्ति की रचना 'दाहावंस' है जिसका विवेचन हम वंश-साहित्य का विवरण देते समय करेंगे । इसी प्रकार वाचिम्मर ( उपर्युक्त सारिपुत्त के शिष्य ही ) के थूपवंस है. जिनका विवेचन भी हम वही करेंगे । बुद्धरक्खित और मेथंकर की रचनाएं
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