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( ५१४ ) १७. धम्मपदट्ठकथा - धम्मपद की अट्ठकथा १८. अन्य ग्रन्थ - ज्ञानोदय आदि (जो प्राप्त नहीं)
इनका कुछ संक्षिप्त परिचय देना यहाँ आवश्यक होगा। विसुद्धिमग्ग' ___"विसुद्धिमग्ग' या 'विसुद्धिमग्गो' (विशुद्धि-मार्ग) सम्भवतः आचार्य बुद्धघोष का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसे बुद्ध-धर्म का विश्वकोश ही समझना चाहिये । बौद्ध धर्म या साधना सम्बन्धी कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण विषय नहीं है जिसका विस्तृत विवेचन इस ग्रन्थ में न किया गया हो। अपने पूर्वगामी सम्पूर्ण पिटक और अनुपिटक साहित्य का मन्थन ही जैसे आचार्य बुद्धघोष ने इस ग्रन्थ में किया है। आचार्य बुद्धघोष ने भी अपनी रचनाओं में इस ग्रन्थ को विशेष महत्त्वपूर्ण माना है । दीघ, मज्झिम, संयुत्त और अंगुत्तर इन चारों निकायों की अपनी अट्ठकथाओं की प्रस्तावनाओं में उन्होंने पुनरुक्तिपूर्वक यह कहा है "चारों आगमों (निकायों) के बीच में स्थित होकर यह 'विसुद्धि-मग्ग' उनके यथार्थ अर्थ को प्रकाशित करेगा।"२ ऐसा मालूम पड़ता है उन्होंने पहले 'विसुद्धि मग्ग' की रचना की और फिर चार निकायों की अट्टकथाओं की । इसीलिए जिस विषय का विस्तृत निरुपण उन्होंन पहले 'विसुद्धि मग्ग' में कर दिया है, उसे
१. इस ग्रन्थ का देव-नागरी लिपि में सम्पादन आचार्य धर्मानन्द कोसम्बी ने किया है, जो भारतीय विद्या भवन, बम्बई, (१९४०), से प्रकाशित भी हो चुका है। इस महत्वपूर्ण संस्करण का उल्लेख कर देने के बाद अन्य किसी संस्करण के उल्लेख करने की अपेक्षा नहीं रह जाती। निश्चय ही यह इतना ही महत्त्वपूर्ण सम्पादन है और हिन्दी का तो विशेष गौरव है। 'विसुद्धि-मग्ग' का अभी हिन्दी अनुवाद प्रकाशित नहीं हुआ। इस लेखक ने इसके 'शोल-स्कन्ध' का अनुवाद किया है, जो 'सस्ता साहित्य मंडल' से प्रकाशनीय है । इसी प्रकार त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्म-रक्षित का भी इस सम्पूर्ण ग्रन्थ का अनुवाद ज्ञान-मंडल, काशी से
छपने वाला है। २. मज्झे विसुद्धिमग्गो एस चतुन्नम्पि आगमानं हि ठत्वा पकासयिस्सति तत्थ यथाभासितं अत्थं ॥