________________
( ४८९ >
बताया । क्या भगवान् जानते नहीं थे, इसलिए नहीं बताया, या भगवान् को वह रहस्य ही रखना था, इसलिए नहीं बताया । भन्ते नागसेन ! यदि भगवान् ने यह ठीक ही कहा था कि तथागत को रहस्य रखना नहीं है तो फिर क्या उन्होंने न जानने के कारण ही ( अजानन्तेन ) ही उसे नहीं बताया । यदि जानने पर भी नहीं बताया, तब तो फिर तथागत की आचार्य -मुष्टि ( रहस्य - रखना ) है ही । यह भी दोनों ओर कठिनता पैदा करने वाला प्रश्न आपकी सेवा में उपस्थित है । " भन्ते नागसेन ! आप कहते हैं कि तथागत को भोजन, वस्त्र, निवास स्थान, पथ्य - औषधादि सामग्री सदा मिल जाती थी | फिर आप कहते हैं एक बार पञ्चशाल नामक ब्राह्मण-ग्राम में से भगवान् विना भिक्षा प्राप्त किये ही धुले-धुलाये भिक्षापात्र को लेकर लौट आये । . भन्ने नागसेन यह भी दोनों ओर कठिनता पैदा करनेवाला प्रश्न आपकी सेवा में उपस्थित है।” भन्ते नागसेन ! भगवान् ने यह कहा 'आनन्द ! तुम तथागत के शरीर की पूजा की चिन्ता मत करो।' पुनः उन्होंने यह भी कहा 'पूजनीय पुरुष की धातुओं की पूजा करो' . . दोनों ओर कठिनता पैदा करने वाला प्रश्न आपकी सेवा में उपस्थित है ।” “भन्ते नागमेन ! भगवान् ने यह कहा है 'भिक्षुओ ! पूर्ण पुरुष, तथागत् भगवान् सम्यक सम्बुद्ध नवीन मार्ग का उद्घावन करने वाले हैं ।' पुनः एक दूसरी जगह उन्होंने यह भी कहा है, 'भिक्षुओ ! जिस प्राचीन मार्ग पर पूर्वकाल में ज्ञानी पुरुष चले, उसी का हो मैंने दर्शन प्राप्त किया है ।' . यह दोनों ओर कठिनता पैदा करनेवाला प्रश्न आपकी सेवा में उपस्थित हैं इस प्रकार के अनेक विरोधाभासमय प्रश्न राजा मिलिन्द ने भदन्त नागसेन के सामने रखे हैं, जिनका उन्होंने अपनी अद्भुत शैली में उत्तर दिया है । प्रत्येक वौद्ध दर्शन के विद्यार्थी के लिए उनका पढ़ना अनिवार्य है । साहित्य की दृष्टि से भी वे अपने महत्व में अद्वितीय है ।
1
'मिलिन्द पञ्ह' के पाँचवे परिच्छेद का नाम है 'अनुमान पञ्हो' (अनुमान प्रश्न ) | एक बार फिर मिलिन्द राजा भदन्त नागसेन के दर्शनार्थ जाता है । वह उनसे पूछता है “भन्ते नागसेन ! क्या आपने बुद्ध को देखा है ( कि पनवृद्धो तया दिट्ठोति ) " नहीं महाराज" ( नहि महाराजाति) “क्या आपके