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वे उत्पन्न होती है (पच्चय-धम्म) वे 'हेतु' या कुशलादि मूल धम्म हैं। जिम प्रन्यय (पच्चय) से बे पैदा होती हैं, वह हेतु-प्रत्यय (हेतु-पच्चय) है । गेष प्रत्ययों में भी क्रमानुसार हम इन तीन बातों का उल्लेख करेंगे स्था (१) उत्पन्न होने वाली वस्तु (पच्चयुप्पन्न) क्या है ? (६) जिस वस्तु मे वह उत्पन्न होती है (पच्चय-धन्म) वह क्या है ? (३) प्रत्यय क्या है ?
२. आलम्बन प्रत्यय (आरम्मण पच्चयो)--आलम्बन का अर्थ है विषय या आधार । जिस वस्तु के आधार से कोई दुमरी वन्नु पैदा होती है तो उस इमरी वस्तु के प्रति पहली वस्तु का संबंध आलम्बन प्रत्यय का होता है । उदाहरणतः चक्षु-विज्ञान और उससे संयुक्त धर्मों की उत्पत्ति रूप-आयतन पर आधारित है । अतः रूप-आयतन आलम्वन है चक्षु-विज्ञान और उससे संयुक्त धर्मों का। दूसरे शब्दों में, रूप आयतन आलम्बन-प्रत्यय के रूप में चक्षुविज्ञान और उससे संयुक्त धर्मों का प्रत्यय है। इसी प्रकार शब्दायतन, गन्धावतन्, रसायतन और स्पृष्टव्यायतन क्रमशः श्रोत्र-विज्ञान, प्राण-विज्ञान, जिह्वाविज्ञान, काय-विज्ञान और उनमे संयुक्त धर्मों के आलम्बन-प्रत्यय के रूप में प्रत्यय है। इसी प्रकार उपर्य क्त पाँचों आयतन (रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पृष्टव्य ) मिलकर मनो-धातु और उससे संयुक्त धमों के तथा सब धर्म मिलकर मनो-विज्ञान-धातु और उसमे संयुक्त धर्मों के आलम्बन-प्रत्ययके रूप में प्रत्यय है। संक्षेप में, जो जो धर्म चित्त और चेतसिक धर्मों के आलम्बन हैं. वे सभी उनके प्रति आलम्बन-प्रत्यय के रूप में प्रत्यय है ! यहाँ (?) चक्षु (२) श्रोत्र (३) ब्राण (४) जिह्वा और (५) काय-संबंधी विज्ञान एवं उनसे संयुक्त धर्म तथा (६) मनोधातु और (७) मनो-विज्ञान-धातु और इनमे संयुक्त धर्म पच्चयुप्पन्न' अर्थात प्रत्ययों से उत्पन्न होने वाली वस्तुएँ है। इनके 'पच्चयधम्म' अर्थात वे वस्तुएँ जिनमे ये प्रत्ययों के आधार पर उत्पन्न होती है, क्रमशः ये हैं (१) रूप (२) शब्द (३) गन्ध (४) रस और (५) स्पृष्टव्य संबंधी आयतन और इनमे संयुक्त धर्म तथा (६) इन पांचों आयतनों का सम्मिलित रूप और (७) संपूर्ण धर्म । जिस प्रत्यय के आधार पर यह उत्पत्ति होती है, वह आलम्बन-प्रत्यय (आरम्मण-पच्चयो) है ।