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का पता नहीं चलता।" आवागमन के चक्र को अविद्या ही गति प्रदान करती है। यदि अविद्या का निरोध कर दिया जाय तो संस्कारों का निरोध ! संस्कारों का निरोध कर दिया जाय तो विज्ञान का निरोध। विज्ञान का निरोध कर दिया जाय तो नाम-रूप का निरोध । नाम-रूप का निरोध कर दिया जाय तो छह आयतनों का निरोध । छह आयतनों का निरोध कर दिया जाय तो स्पर्श का निरोध । . . . . वेदना का निरोध ! . . . . . .तृष्णा का निरोध ! . . . . . . उपादान का निरोध ! . . . . . . भव का निरोध ! ......जन्म का निरोध ! . . . . . . जरा, मरणशोक, रोदन-विलाप, दुःख, मानसिक कष्ट एवं सारे दुःख-पुंज का निरोध! यही वुद्धोक्त प्रतीन्य समुत्पाद है, जिसे दुःव के आगमन और अस्तंगमन को हेनुपूर्वक दिखाने के लिए भगवान ने करुणापूर्वक उपदेश किया ।' ___ डम प्रतीत्य समुत्पाद का ही पूरे विस्तार के साथ विवेचन ‘पट्टान' में में किया गया है। किन्तु सुत्तन्त की अपेक्षा पट्टान की विवेचन-पद्धति की एक विशेषता है। जैसा प्रतीत्य समत्पाद के उपर्यक्त वर्णन से स्पष्ट है, प्रतीत्य समुत्पाद को कारण-कार्य परम्परा में १२ कड़ियाँ हैं, जो एक दुसरी मे प्रत्ययो के आधार पर जुड़ी हुई है। सुत्नन्त में अधिकांश इन कड़ियों की व्याख्या मिलती है। पट्ठान में इन कड़ियों की व्याख्या पर जोर न देकर उन प्रत्ययों पर जोर दिया गया है, जिनके आश्रय से वे पैदा होती और निरुद्ध होती रहती है। पट्ठान में इस प्रकार के २४ प्रत्ययों का विवेचन किया गया है । यही उसकी एकमात्र विषय-वस्तु है । जैसा उसके नाम से स्पष्ट है, 'पट्ठान' (पच्चय-- ठान) वास्तव में प्रत्ययों का स्थान ही है ।
__ आकार और महत्त्व की दृष्टि से पट्ठान अभिधम्म-पिटक का एक महाग्रन्थ है। महत्त्व में उसका स्थान धम्मसंगणि के बाद ही है। स्यामी संस्करण की ६ जिल्दों में ३१२० पृष्ठ है। यह हालत तब है जब ग्रन्थ के चार मुख्य भागों में से अन्तिम तीन अत्यंत संक्षिप्त कर दिये गये है। यदि उनका भी विवरण प्रथम भाग के समान ही किया जाता तो महास्थविर ज्ञानातिलोक का यह अनुमान टीक है कि कुल ग्रन्थ का आकार १४००० पष्ट से कम न होता । जैसा अभी कहा जा चुका है संपूर्ण ग्रन्थ चार बड़े भागों में विभक्त है, यथा
१. देखिये विशेषतः महानिदान-सुत्त (दोघ. २०१५), महाहत्थिपदोपम-सुत
(मझिम. ११३८) आदि