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( ४५२ ) भूमि में निरुद्ध हो जाता है जिस भूमि में रूप-स्कन्ध पैदा होता है ? क्या रूप-स्कन्ध उस जीवन-भूमि में निरुद्ध हो जाता है, जिस जीवन भूमि में वेदना-स्कन्ध उत्पन्न होता है ?” आदि, आदि। तृतीय मुख्य भाग 'परिज्ञा-वार (अन्तर्ज्ञान-भाग) में प्रश्नोत्तर के रूप में यह दिखाने की चेष्टा की गई है कि धम्मों का अन्तर्ज्ञान किस प्रकार पैदा होता है । इसके प्रश्न इस प्रकार हैं - 'क्या जिसने रूप-स्कन्ध का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उसे वेदना-स्कन्ध का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है ? क्या जिसने वेदना-स्कन्ध का ज्ञान प्राप्त कर लिया है, उसे रूप-स्कन्ध का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है ?' आदि, आदि ।
इसमे अधिक 'यमक' की वीथियों में भ्रमण करना “सूखी हड्डियों की घाटी' में भ्रमण करना ही होगा, जैसा श्रीमती रायस डेविड्स ने उसे कहा है। वास्तव में यह किसी भी पारिभाषिक शब्द-कोश के लिए कहा जा सकता है। 'यमक' भी अभिधम्म का शब्द-कोश ही है। अतः उसका सूखापन भी अभिधम्म के विद्यार्थियों के लिए एक सतत उपयोग और महत्व की वस्तु है । पठान २
' अभिवम्म-दर्शन धम्मों (पदार्थो-अवस्थाओं) काएक परिपूर्ण दर्शन है। धम्मसंगणि में धम्मों का विश्लेषण, विभंग में उनका वर्गीकरण, धातुकथा में उस वर्गीकरण के कुछ शीर्षकों पर अधिक प्रकाश, पुग्गलपञति में इस धम्म-दर्शन की पृष्टभूमि में व्यक्तियों के प्रकारों का निरूपण,कथावत्थु में अभिधम्म-दर्शन संबंधी मिथ्या
इस ग्रन्थ को क्लिष्ट शैली और दुरूह विषय-वस्तु के कारण श्रीमती रायस डेविड्स जैसी महाप्राज्ञा एवं अभिधम्म-दर्शन को मननशीला अध्येत्री को भी अनेक विप्रतिपत्तियों में पड़ जाना पड़ा। उनकी कठिनाइयों और सन्देहों का निवारण प्रसिद्ध बर्मी बौद्ध विद्वान् स्थविर लेदि सदाव ने किया था। लेदि सदाव के विचार एक पालि निबन्ध के रूप में 'यमक' के पालि टैक्स्ट सोसायटी द्वारा प्रकाशित संस्करण के परिशिष्ट में निहित हैं । ऐतिहासिक गौरव को प्राप्त यह निबन्ध पालि-साहित्य के विद्यार्थियों
द्वारा द्रष्टव्य है। २. श्रीमती रायस डेविड्स् ने इस ग्रंथ का अंशतः सम्पादन पालि टैक्स सोसायटी
के लिए किया है। दुक-पट्ठान, भाग प्रथम (१९०६) एवं तिक-पट्ठान, भाग १-३ (१९२१-२३)। इस ग्रंथ के बरमी, सिंहली एवं स्यामी संस्करण उपलब्ध हैं। हिन्दी में न अनुवाद हैं, न मूल संस्करण।