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( ४३९ ) निर्वाण प्राप्त करते हैं, उस काल के अन्त होने पर ही निर्वाण प्राप्त
करते हैं ? उत्तरापथकों का ही मत । ११९. क्या सम्यक् दृष्टि-सम्पन्न व्यक्ति जान-बुझ कर हत्या कर सकता है ?
पूर्वशैलीय भिक्षु कहते थे कि ऐसा मनुष्य अभी क्रोध-मुक्त नहीं हुआ, अतः
क्रोध के आवेश में उसके लिये ऐसा करना असम्भव नहीं है। १२०. क्या सम्यक्-दृष्टि-सम्पन्न व्यक्ति दुर्गतियों से विमुक्त हो जाता है ?
उत्तरापथकों का यह मत था। स्थविरवादियों के मतानुसार दुर्गति के दो अर्थ हैं, पशु-योनि आदि दुर्गतियाँ और इच्छा-आसक्ति आदि दुर्गतियां ।
उपर्युक्त व्यक्ति उनके मतानुसार केवल प्रथम दुर्गति से विमुक्त हो जाता है। १२१. क्या स्रोत आपन्न व्यक्ति अपने सातवें जन्म में दुर्गतियों से विमस्त हो
जाता है ? उपर्यक्त के समान ।
तेरहवाँ अध्याय १२२. क्या जीवन-काल (कल्प-कप्प) के लिये दंडित व्यक्ति युग-काल (कल्प
कप्प) तक दंड भोगेगा ? 'कल्प' का अर्थ न समझने के कारण राज
गृहिक भिक्षुओं का यह भ्रम था। १२३. क्या नरक में यातना पाता हुआ प्राणी कुशल-चित्त की भावना नहीं कर
सकता ? 'नहीं कर सकता' कहते थे उत्तरापथिक । स्थविरवादियों के
अनुसार वह उस अवस्था में भी कुछ कुशल कर्म कर सकता है। १२४. क्या पितृ-वध आदि दुष्कृत्यों को करने वाला भी कभी आगे चल कर
शुभ कर्म-पथ पर आ सकता है। उत्तरापथक कहते थे 'आ सकता है। स्थविरवादियों के अनुसार वह उसी अवस्था में आ सकता है जब कि बिना
निश्चय किये हुए और दूसरे की आज्ञानुसार उसने ऐसा किया हो। १२५. क्या व्यक्ति का भाग्य उसके लिये पहले से ही निश्चित (नियत) है ?
पूर्वशैलीय और अपरशैलीय भिक्षुओं का ऐसा ही विश्वास था। १२६-२७. क्या ५ नीवरणों (चित्त के आवरणों) और १० संयोजनों (चित्त
बन्धनों) को जीतते समय भी व्यक्ति इनसे युक्त हो सकता है ? उत्तरापथक भिक्षुओं का विश्वास था कि हो सकता है ।