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था नहीं । उसने जैसा प्रयोग जिस जनपद में चलता देखा, वैसा ही शिलालेखों में अंकित करवा दिया। इसी कारण उनमें उच्चारण आदि की अल्प विभिन्नताएँ मिलती हैं । एक ही लेख के पूर्व ( जौगढ़ ) पश्चिम ( गिरनार ) और उत्तर ( मनसे हर ) इन तीन संस्करणों का मिलान करने से यह भेद स्पष्ट हो जाता है । स्थानाभाव के कारण हम यहाँ इन तीनों अभिलेखों को उद्धृत तो नहीं कर सकते, ' किन्तु उनके आधार पर विभिन्न भाषा-स्वरूपों का अध्ययन करना आवश्यक है। उनके भाषा-स्वरूपों में मुख्य विभिन्नताएँ इस प्रकार हैं । (१) पश्चिम ( गिरनार) के शिलालेख में 'र्' का 'लू' में परिवर्तन नहीं होता । उदाहरणतः 'राजा', 'राज्ञा', 'पुरा', 'आरभित्वा' जैसे प्रयोग वहाँ दृष्टिगोचर होते हैं । उत्तर के शिलालेख (मनसेहर) में भी 'र्' का 'ल्' में परिवर्तन नहीं होता, किन्तु वहाँ प्रादेशिक उच्चारण-भेद अवश्य दृष्टिगोचर होता है । 'राजा', की जगह वहाँ 'रज', 'राज्ञा' की जगह 'राजिने', 'पुरा' की जगह 'पुर' और 'आरभित्वा' की जगह 'आरभितु' मिलते हैं । पूर्व के शिलालेख (जौगढ़) में 'र्' का 'लू' में परिवर्तन हो जाता है । वहाँ 'राजा' की जगह 'लाजा' है, 'राज्ञा' की जगह 'लाजिना' है, 'पुरा' की जगह 'पुलुवं' है और 'आरभित्वा' की जगह 'आलभितु' है । ( २ ) पश्चिम के लेख में ( सामान्यतः पालि के समान) केवल दन्त्य 'म्' का ही प्रयोग है । तालव्य 'श' और मूर्द्धन्य 'ष' वहाँ नहीं मिलते। इनकी जगह भी दन्त्य 'स्' का ही प्रयोग मिलता है । 'प्रियदसि' इसका उदाहरण है । पूर्व के लेख की भी यही प्रवृत्ति है । किन्तु उत्तर के लेख की आश्चर्यजनक प्रवृत्ति 'श्' और 'ष' दोनों को रखने की है । वहाँ 'प्रियदसि' ' (पश्चिम) या 'पियदसि' ( पूर्व ) की जगह 'प्रियदर्श' है । इसी प्रकार 'प्रियदसिना' या 'पियदसिना' की जगह 'प्रियदगिन' है। 'प्राणसतसहस्रानि (पश्चिम) या 'पानमत सहसानि ' ( पूर्व ) की जगह 'प्राणशतसहस्रानि' है । 'आरभरे (पश्चिम) या 'आलभियिसू' की जगह आश्चर्यजनक रूप से 'अरभिषंति' है ! ( ३ ) पुल्लिङ्ग अकारान्त शब्द के प्रथमा एक-वचन का रूप पश्चिम के अभिलेख में ओकारान्त है, जैसे 'एको मगो' । किन्तु पूर्व और उत्तर के अभिलेखों में वह एकारान्त हो गया है, जैसे 'एक मिगे' (पूर्व), 'एके ग्रिगे' (उत्तर) । (४) पूर्व के अभिलेख में व्यंजन रेफयुक्त होने पर रेफ की ध्वनि लुप्त होकर व्यंजन में ही मिल गई
१. जिसके लिये देखिये भिक्षु जगदीश काश्यपः पालि महाव्याकरण, पृष्ठ तेतीस - चौंतीस ( वस्तुकथा)