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( ४३५ ) ६८. क्या पृथ्वी भी कर्म-विपाक है ? अन्धकों का विश्वास । ६९. क्या जरा और मृत्यु कर्म-विपाक हैं ? अन्धकों का विश्वास । ७०, क्या चार आर्य-मार्गों से संयुक्त चित्त की अवस्थाएं कर्म-विपाक पैदा नहीं
करतीं ? अन्धकों का विश्वास । ७१. क्या एक कर्म-विपाक दूसरे कर्म-विपाक को पैदा करता है ? अन्धकों का
ऐसा ही विश्वास।
आठवाँ अध्याय
७२. क्या जीवन के छह लोक है ? अन्धक और उत्तरापथकों की मान्यता ।
स्थविरवादी केवल पाँच लोक मानते थे, मनुष्य-लोक, पशु-लोक, नरकलोक, यक्ष-लोक, और देवलोक । अन्धक और उत्तरापथक एक छठे
लोक, असुर-लोक, को भी मानते थे । ७३. क्या दो जन्मों के बीच में कुछ व्यवधान होता है ? पूर्वशैलीय और सम्मि
त्तिय भिक्षुओं के अनुसार होता था। ७४. क्या काम-धातु का अर्थ केवल काम-वासना-सम्बन्धी पाँच विषयों का उप
भोग ही है ? पूर्वशीलीय भिक्षु मानते थे कि काम-धातु से तात्पर्य केवल पाँच इन्द्रियों (चक्षु., श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा, काय) सम्बन्धी विषय भोगों से है । स्थविरवादी परम्परा में इसका विस्तृत अर्थ लिया गया है, अर्थात् कामनाओं से प्रवर्तित होने वाला सारा जीवन-लोक, इच्छाओं की दौड़
धुप में लगा हुआ सारा जीव-जगत् । ७५. क्या 'काम' का अर्थ है इन्द्रिय-चेतना का आधार ? पूर्वशैलीय भिक्षुओं
का मत । ७६-७७. क्या रूप-धातु का तात्पर्य है केवल रूप वाले पदार्थ (रूपिनो धम्मा) ?
और अ-रूप धातु का अर्थ है केवल अ-रूप वाले पदार्थ ? अन्धकों का मत । ७८. क्या रूप-लोक का प्राणी ६ इन्द्रियों वाला होता है ? अन्धकों और सम्मि
तियों की मान्यता। ७२. क्या अरूप-लोक में भी रूप है ? अन्वकों का विश्वास ।