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पांचवाँ अध्याय ४४. क्या विमुक्ति और विमुक्ति-जान दोनों एक ही वस्तु हैं ? अन्धकों की यही
मान्यता। ४५. क्या शैक्ष्य (जिसे अभी सीखना बाकी है, या जिसने अर्हत्व की अवस्था
अभी प्राप्त नहीं की है) को अशैक्ष्य (अर्हत्)-सम्बन्धी ज्ञान भी उपस्थित
रहता है ? उत्तरापथकों का विश्वास । ४६. पृथ्वी-ऋत्स्न के द्वारा ध्यान करने वाले का ज्ञान क्या मिथ्या-ज्ञान ही है ?
अन्धकों का विश्वास । ४७. क्या 'अ-नियत' (चार आर्य-मार्गों में जो प्रतिष्ठित नहीं हुआ है) को
'नियाम' (आर्य-मार्ग की चार अवस्थाएँ, यथा स्रोत आपत्ति, सकृदागामी, अनागामी और अर्हत्त्व) सम्बन्धी ज्ञान उपस्थित रहता है ? उत्तरा
पथकों का ऐसा ही विश्वास । ४८. क्या सभी ज्ञान प्रतिसम्भिदा-जान है ? अन्धकों का विश्वास । ४९. क्या यह सत्य है कि संवृति-ज्ञान (सम्मति आण-व्यावहारिक ज्ञान जिसके ___ अनुसार हम मनुष्य, वृक्ष आदि जैसी बातें कहते हैं जिनका परमार्थतः कोई
अस्तित्व नहीं) का विषय भी सत्य ही है ? अन्धकों का ऐसा ही विश्वास । ५०, क्या परचिन-ज्ञान का आधार चेतना ही है ? अन्धकों का ऐसा ही मत । ५१. क्या सम्पूर्ण भविष्य का ज्ञान सम्भव है ? अन्धकों के अनुसार सम्भव था । ५२. क्या एक साथ सम्पूर्ण वर्तमान का ज्ञान सम्भव है ? अन्धकों के अनुसार
सम्भव था। ५३. क्या साधक को दूसरों की मार्ग-प्राप्ति का भी ज्ञान हो सकता है ? अन्धक कहते थे 'हाँ' !
छठा अध्याय ५४. क्या चार मार्गो के द्वारा आश्वासन मिल सकता है ? अन्धकों का विश्वास । ५५. क्या प्रतीत्य समुत्पाद अ-संस्कृत (अ-कृत) और शाश्वत है। पूर्वशैलीय
और महीशासक भिक्षुओं का ऐसा ही विश्वास था। ५६. क्या चार आर्य-सत्य अ-संस्कृत और शाश्वत है ? पूर्वशैलीय भिक्षुओं का यही मत ।
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