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________________ को ब्रह्मचर्य का अर्थ समझने में ही भ्रम हो गया है । भिक्षु-जीवन (ब्रह्मचर्य) के स्वर्ग में न होते हुए भी पवित्र-जीवन (ब्रह्मचर्य) का अभ्यास करने में तो देवता स्वतन्त्र ही हैं । अतः स्थविग्वादियों के अनुसार देवताओं में भी ब्रह्मचर्य की प्राप्ति संभव है। ४. क्या चित्त-संयोजनों (मानसिक-बन्धनों) का विनाश विभागशः होता है ? सम्मितियों का विश्वास था कि स्रोत आपन्न व्यक्ति दुःख और दुःख-समदय का ज्ञान प्राप्त कर, प्रथम तीन चित्त-बन्धनों के केवल कुछ अंगों को उच्छिन्न करता है और बाकी अंशों को अधिक ऊंची अवस्थाओं को प्राप्त करने के बाद उच्छिन्न करता है। स्थविरवादियों का इसके विपरीत तर्क यह है कि इस प्रकार एक ही व्यक्ति को विभागशः स्रोत आपन्न और विभागग: स्रोत आपन्न नहीं भी मानना पड़ेगा। सम्मतियों ने अपनी स्थिति के समर्थन के लिए बुद्ध-वचन को उद्धृत किया है, किन्तु स्थविरवादियों ने दूसरा बुद्ध-वचन उद्धृत कर उनकी स्थिति को स्वीकार नहीं किया है। ५. क्या संसार में रहते हुए भी कोई मनुष्य राग और द्वेष से मक्त हो सकता है ? सम्मतियों का विश्वास था कि हो सकता है। स्थविरो ने इमे बोकार नहीं किया । ____. क्या सब कुछ है ? (सब्बं अत्थि ? ) सब्बत्थिवादियों (सर्वास्तिवादियों) का विश्वास था कि भूत , वर्तमान और भविष्यत् के सभी भौतिक और मानसिक धर्मों की सत्ता है । स्थविरवादियों के मतानुसार अतीत समाप्त हो चुका, भविष्यत् अभी उत्पन्न नहीं हुआ, केवल वर्तमान ही की सना है । ७. सिद्धान्त छह का ही पूरक है । ८. क्या यह सत्य है कि भूत, और भविष्यत् की कुछ वस्तुओं का अस्तित्व है और कुछ का नहीं ? कस्सपिक भिक्षु कहते थे कि अतीत भी अंशतः वर्तमान में विद्यमान है और जिन भविष्य के पदार्थों के होने का हम दृढ़ निश्चय कर सकते है उनकी भी सत्ता मान सकते है । स्थविरों ने इसे स्वीकार नहीं किया है। ९. क्या सभी पदार्थ स्मृति के आलम्बन है ? अन्धकों का ऐसा विश्वास था, किन्तु स्थविरों ने इसका खंडन किया है ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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