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(४०७ ) ६-पच्चयाकार-विभंग
(प्रतीत्य समुत्पाद का विवरण) इस विभंग में प्रतीत्य ममुत्पाद का वर्णन है। मुत्तन्त-भाजनिय में पहले सत्तन्त का यह उद्धरण है "अविद्या के प्रत्यय से संस्कार-चेतना की उत्पनि, मंस्कारचेतना के प्रत्यय में विज्ञान की उत्पत्ति, विज्ञान के प्रत्यय मे नाम और रूप की उत्पत्ति, नाम और रूप के प्रत्यय ने छः आयतनों की उत्पत्ति, छः आयतनों के प्रत्यय से स्पर्ग की उत्पत्ति, स्पर्ग के प्रत्यय से वेदना की उत्पत्ति,वेदना के प्रत्यय से तृष्णा के उत्पनि, तृष्णा के प्रत्यय से उपादान की उत्पत्ति, उपादान के प्रत्यय मे भव की उत्पनि, भव के प्रत्यय मे जन्म की उत्पत्ति, जन्म के प्रत्यय मे जरामग्ण, दुःख, गोक आदि की उत्पत्ति” प्रतीत्य समुत्पाद में प्रयुक्त १२ निदानों की व्याख्या यहाँ निदान-मंयुत्त के समान ही की गई है। अभिधम्म-भाजनिय में में उन २४ प्रत्ययों का उल्लेख है, जिनके आधार पर भौतिक और मानसिक जगत् में उत्पत्ति और निरोध का व्यापार चलता है । इन प्रत्ययों का विस्तृत विवेचन आगे चल कर पूरे ग्रन्थ 'पट्ठान-प्रकरण' में किया गया है । इस विभंग के अन्त में प्रश्नोत्तर रूप में प्रतीत्य समुत्पाद के विभिन्न अंगों में कौन कुशल, अकुगल आदि है, इसका विवेचन पूर्ववत ही किया गया है।
७-सतिपट्टान-विभंग
(चार स्मृति-प्रस्थानों का विवरण) ___ काया में कायानुपश्यी होना, वेदना में वेदनानुपश्यी होना, चित्त में चित्तानपश्यी होना और धर्मों में धर्मान पश्यी होना, यही चार स्मृति-प्रस्थान है, जिनका विस्तृत उपदेश मतिपट्ठान-मुत्त (मज्झिम. १।१।१०) जैसे सुत्तन्त के अंगो में दिया गया है। इस विभंग के सुत्तन्त-भाजनिय में इमी का संक्षेप कर दिया गया है। अभिधम्म-भाजनिय में यह दिखाया गया है कि इनकी भावना लोकोत्तर ध्यान में किस प्रकार होती है। ‘पञ्ह पुच्छकं' में इनका विभाजन कुशल, अकुगल आदि के रूप में किया गया है। इनमें अकुगल कोई नही है। चारो स्मृतिप्रस्थान या तो कुगल होते हैं या अव्याकृत । अर्हत की चित्त-अवस्था में आगे के