________________
(
४०४ )
इन अठारह धातुओं में चक्षु, रूप, श्रोत्र, शब्द, घाण, गन्ध, जिह्वा, रस, काय ओर स्पृष्टव्य, ये दस धातुएँ भौतिक हैं। अत: वे रूपस्कन्ध में सम्मिलित हैं । चक्षु-विज्ञान, श्रोत्र-विज्ञान, घ्राण-विज्ञान, जिह्वा-विज्ञान, काय-विज्ञान, मन, और मनो विज्ञान, ये सात धातुऐं मानसिक हैं । धर्म-धातु अंशतः मानसिक और अंशतः भौतिक है । चक्षु और रूप के संयोग से उत्पन्न चित्त की अवस्था का नाम चक्षु-विज्ञान है । इसी प्रकार श्रोत्र-विज्ञान आदि के विषय में भी नियम है । मनो-धातु, चक्षु-विज्ञान आदि विज्ञानों के बाद, द्रष्टा और दृश्य के संयोग के ठीक अनन्तर, उत्पन्न हुई चित्त की अवस्था का नाम है । मनोविज्ञान-धातु मन और धर्मों के संयोग सेउत्पन्न चित्त की उस अवस्था का नाम है, जो मनो-धातु के बाद उत्पन्न होती है। ‘पञ्चपुच्छकं' में फिर उसी क्रम से प्रश्न हैं, जैसे प्रथम दो विभंगों में, यथा (१) १८ धातुओं में से कितनी कुशल हैं, कितनी अकुशल और कितनी अव्याकृत ? (२) कितनी सुख की वेदना से युक्त हैं ? कितनी दुःख की वेदना से युक्त हैं ? कितनी न-सुख-न-दुःख की वेदना से युक्त ? आदि, आदि । इनके उत्तर भी ध्यान देने योग्य हैं (१) १६ धातुएँ (धर्म और मनोविज्ञान को छोड़ कर शेष सव) अव्याकृत हैं। दो धातुएँ (धर्म और मनोविज्ञान) कुगल भी हो सकती है, अकुशल भी, और अकुशल भी 'सिया कुसला, सिया अकुसला, सिया अव्याकता' । (२) दस धातुओं (चक्षु, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा, काय, रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पृष्टव्य) के विषय में निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता कि वे सुख की वेदना से युक्त हैं, या दुःख की वेदना से युक्त हैं या न-सुख-न-दुःख की वेदना से युक्त हैं। पाँच धातुएँ (चक्षु-विज्ञान, श्रोत्रविज्ञान, घ्राण-विज्ञान, काय-विज्ञान, मन) न-पुख-न-दुःख की वेदना से युक्त हैं। काय-विज्ञान-धातु मुख की वेदना से भी युक्त हो सकती है और दुःख की वेदना मे भी। मनोविज्ञान-धातु सुख, दुःख और न-मुग्व-न-दुःख, इन तीनों वेदनाओं से किमी से भी युक्त हो सकती है। इसी प्रकार धर्म-धातु भी इन तीनों वेदनाओं में से किसी से युक्त हो सकती और उसके विषय में यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि या तो वह मुख की वेदना मे ही युक्त है, या दुःख की वेदना से या न-सुख-न-दुःख की वेदना से, आदि, आदि ।