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ये सब आयतन अनित्य, दुःख और अनात्म हैं, इतना ही कहकर सुत्तन्तभाजनिय समाप्त हो जाता है। अभिधम्म भाजनिय में उपर्युक्त १२ आयतनों के स्वरूप की व्याख्या की गई है । “क्या है चक्षु-आयतन ? यह चक्षु, जो चार महाभूतों से उत्पन्न, व्यक्तिगत सत्ता से अभिन्न रूप से संबंधित, अनुभूति (पसाद) रूपी स्वभाववाली, प्रत्यक्ष का अविषय (अनिदस्सं--क्योंकि प्रत्यक्ष तो केवल रंग, प्रकाश आदि के अनुभवों का होता है) किन्तु साथ ही इन्द्रिय अनुभवों पर प्रतिक्रिया करनेवाली (सप्पटिघ) है-यही अदृश्य चक्षु, जिसकी इन्द्रिय अनुभवों पर प्रतिक्रिया के कारण व्यक्ति अनुभव करता है कि उसने किसी दृश्य पदार्थ को देखा है, देखता है, या देखेगा, यही कहलाता है चक्षु-आयतन।" इसी प्रकार श्रोत्र, त्राण जिह्वा और काय-संबंधी आयतनों की भी व्याख्या की गई है। चक्षु, श्रोत्र, प्राण, जिह्वा और काय संबंधी विज्ञानों, मनोधातु और मनोविज्ञानधात के समष्टिगत स्वरूप को ही 'मन-आयतन' कहा गया है। चार महाभूतों से उत्पन्न संपूर्ण भौतिक व्यापार, जो रंग आदि के रूप में दिखाई पड़ता है, 'रूपायतन' कहा गया है । बारह आयतनों में से पाँच इन्द्रिय आयतनों (चक्ष, श्रोत्र, घ्राण, जिह्वा, काय) और पाँच विषय-आयतनों (रूप, शब्द, गन्ध, रस, स्पृष्टव्य), इन दम आयतनों को भौतिक कहा गया है और मन-आयतन को मानसिक । धर्म-आयतन भौतिक भी हो सकता है और मानसिक भी, अतीत का भी, वर्तमान का भी, और भविष्यत् का भी, वास्तविक भी, और काल्पनिक भी। ‘पञ्ह पुच्छक' में स्कन्ध-विभंग के नमूने पर ही प्रश्न है, यथा (१) दादसायतनानं कति कमला ? कति अकुसला? कति अव्याकता ? अर्थात् १२ आयतनों में से कितने कुशल हैं, कितने अकुशल, कितने अव्याकृत ? (२) कति सुखाय वेदनाय सम्पयुना? कति दुक्खाय वेदनाय सम्मयुना? कति अदुक्खमसुखाय वेदनाय सम्पयुत्ता? अर्थात् कितने सुख की वेदना से युक्त है ? कितने दुःख की वेदना से युक्त है ? कितने न-दुःख-न-पुख की वेदना से युक्त है ? आदि, आदि। इनके उत्तर भी क्रमशः देखिए, (१) दस आयतन (चक्षु, रूप, श्रोत्र, शब्द, घ्राण, गन्ध, जिह्वा, ग्म, काय, स्पृष्टव्य) अव्याकृत है । दो आयतन (मन और धर्म) कुशल भी हो सकते है, अकुशल भी और अव्याकृत भी--"मिया कुमला, सिया अकुसला, मिया अब्याकता ।" (२) दस आयतनों के विषय में न तो निश्चयपूर्वक