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( ३८७ ) १०. अधिमोक्ष (निश्चय) (अधिमोक्खो) ११. वीर्य (वीरियं) १२. प्रीति (पीति)
१३. छन्द (इच्छा) (छन्दो) . २. २५ शोभन चेतसिक, जो सामान्यतः कुशल-चित्त और उनके अनुरूप
___अव्याकृत-चित्तों में पाये जाते हैंअ. १९ शोभन-चित्त-साधारण' अर्थात् सभी कुशल-चित्तों में पाई
जाने वाली चित्त की अवस्थाएँ १४. श्रद्धा (सद्धा) १५. स्मृति (सति) १६. ह्री (हिरी--नैतिक लज्जा, पाप-संकोच) १७. अवत्रपा (ओतप्पो-पाप-भय) १८. अलोभ (अलोभो) १९. अद्वेष (अदोसो) २०. तत्रमध्यस्थता (तत्र मज्झत्तता-समचित्तत्व) २१. काय-प्रश्रब्धि (कायप्पस्सद्धि-काया की शान्ति) २२. चित्त-प्रश्रब्धि (चित्तप्पस्सद्धि-चित्त की शान्ति) २३. कायलघुता (कायलहुता-~-शरीर का हल्कापन) २४. चित्त-लघुता (चित्तलहुता-चित्त का हल्कापन) २५. कायमृदुता (कायमदुता) २६. चित्तमृदुता (चित्तमुदुता) २७. कायकर्मज्ञता (कायमम्मञता) २८. चित्तकर्मज्ञता (चित्तकम्मञता) २९. कायप्रागुण्यता (कायुपागुञता) ३०. चित्त प्रागुण्यता (चित्तपागुञता) ३१. काय-ऋजुता (कायुजुकता-काया की सरलता)
३२. चिन-ऋजुता (चित्त जुकता--चित्त की सरलता) आ. ६ गोभन-चेतसिक जो किन्हीं कुशल-चित्तों में पाये जाते है किन्हीं में
नहीं, यथा