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( ३८३ ) ४. जिह्वा-विज्ञान ५. काय-विज्ञान--
दुःख या दौर्मनस्य से युक्त ६. मनोधातु (सम्पटिच्छन्न)
उपेक्षा से युक्त ७. मनोविज्ञान-धातु (सन्तीरण)
(घ)पाँच रुपावचर विपाक चित्त-रूपावचर-भूमि के पाँच कुशल-चित्तों के परिणाम-(विपाक)स्वरूप ही दूसरे जन्म में पाँच विपाक-चित्त उत्पन्न होते हैं। अतः उनका स्वरूप भी पूर्वोक्त कुशल-चित्तों के अनुरूप ही है यथा-- १. वितर्क, विचार, प्रीति सुख और एकाग्रता से युक्त प्रथम विपाक-चित्त
द्वितीय विपाक-चित्त
तृतीय विपाक-चित्त
चतुर्थ विपाक-चित्त उपेक्षा
पंचम विपाक-चित्त
(ङ) चार अरूपावचर विपाक-चित्त-अरूपावचर-भूमि के चार कुशलचित्तों के विपाक-स्वरूप उत्पन्न होने के कारण उनके समान ही हैं यथा--
१. आकागानन्त्यायतन विपाक-चित्त २. विज्ञानानन्त्यायतन विपाक-चित्त ३. आकिचन्यायतन विपाक-चित्त ४. नवसंज्ञानासंज्ञायतन विपाक-चित्त
(च) चार लोकोत्तर विपाक-चित्त-लोकोत्तर-भूमिकेचार मार्ग-चित्तों के परिणामस्वरूप दूसरे जन्म में चार फल-चित्त उत्पन्न होते है, जो इस प्रकार है-- १. स्रोत आपत्ति-फल-चित्त (स्रोत आपत्ति के फल को प्राप्त करने की चेतना) २. सकृदागामि-फल-चित्त (सकृदागामि-फल को प्राप्त करने की चेतना ) ३. अनागामि-फल-चित्त (इसी जन्म में निर्वाण के साक्षात्कार रूपी फल को
प्राप्त करने की चेतना) ४. अर्हत्व-फल-चित्त (अर्हत्व-फल प्राप्ति की चेतना)