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अन्तिम रचना है, इसमें कोई सन्देह नहीं हो सकता । किन्तु अन्य ग्रन्थों के तारतम्य के विषय में विभिन्न मत हो सकते हैं । डा० लाहा ने 'पुग्गलपञ्ञत्ति' को कालक्रम की दृष्टि से अभिधम्मपिटक का प्राचीनतम ग्रन्थ माना है। उनका कहना है कि चूँकि अभिधम्मपिटक सुत्तपिटक पर आधारित है, अतः जिस हद तक अभिधम्मपिटक का कोई ग्रन्थ स्पष्ट रूप से सुत्तपिटक पर कम या अधिक अवलंबित है, उसी हद तक उसकी आपेक्षिक प्राचीनता भी कम या अधिक है ।" इसी सिद्धांत को आधार मानकर विवेचन करते हुए उन्होंने दिखाया है कि अन्य सब ग्रन्थों की अपेक्षा 'पुग्गलपञ्ञत्ति' ही सुत्तपिटक पर अधिक अवलंबित है । 'पुग्गलपञ्ञत्ति' की पृष्ठभूमि में दीघ. संयुत्त और अंगुत्तर निकायों के पुग्गलों के प्रकार और विश्लेषण पूरी तरह निहित हैं । उदाहरणत' ' पुग्गलपञ्ञत्ति' के तयो पुग्गला, चत्तारो पुग्गला, पञ्च पुग्गला आदि भाग अंगुत्तर निकाय के क्रमशः तिक-निपात चतुक निपात और पंच निपात आदि के समान ही है । 'पुग्गलपञ्जत्ति' के कुछ अंशों और दोघ निकाय के संगीतिपरियाय - सुत्त में भी अनेक समानताएँ हैं । “पुग्गलपञ्ञत्ति' केपालि टैक्सट् सोसायटी के संस्करण के संपादक डा० मॉरिस ने पुग्गलपञ्ञत्ति और सुत्तपिटक के ग्रन्थों की इन सब समानताओं को सोद्धरण दिखाया है । इससे स्पष्ट प्रकट होता है कि पुग्गलपञ्ञत्ति की समानता, शैली ओर विषय दोनों की दृष्टि से, अभिधम्मपिटक की अपेक्षा सुत्तपिटक से अधिक है । भिक्षु जगदीश काश्यप ने तो यहाँ तक कहा है कि 'पुग्गलपञ्ञत्ति' के विवेचन को निकाल देने पर भी अभिधम्म-दर्शन की पूर्णता में कोई कमी नहीं आती । 'दुग्गलपत्ति' की प्रथम मातिका में अवश्य अभिधम्म-शैली का अनुसरण किया गया है, अन्यथा वह सुत्तपिटक का ही ग्रन्थ जान पड़ता है । अतः पुग्गलपञ्जत्ति की निश्चित तिथि चाहे जो कुछ हो, वह अभिधम्मपिटक के ग्रन्थों में काल-क्रम की दृष्टि से सबसे प्राचीन है, ऐसा डा० लाहा ने माना है । " पुग्गलपञ्ञत्ति' के समान ही डा० लाहा ने 'विभंग' की भी अभिधम्म - पृष्ठभूमि का विवेचन किया है । 'विभंग' के सच्च विभंग, सतिपट्ठान-विभंग और धातु-विभंग, मज्झिम- निकाय
१. हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ २२
२. पुग्गलपञ्ञत्ति, पृष्ठ १०-११ (भूमिका)
३. अभिधम्म फिलासफी, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १६५
४. हिस्ट्री ऑव पालि लिटरेचर, जिल्द पहली, पृष्ठ २३