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________________ ( ३३५ ) की नहीं है । धम्म तो सर्वत्र एक रम है। किन्तु तीनों पिटकों में, उनके नाना वर्गीकरणों में, वह नाना रूप हो गया है। 'इन्द्रो मायाभिः पुररूप ईयते ।' जो धम्म मन-पिटक में उपदेश-रूप है, विनय में जो मंयम-रूप है, वही अभिधम्म में तत्व-म्प है। इसका कारण अधिकारियों का तारतम्य ही है। प्रस्थान-भेद न धर्म के स्वरूप में भी भेद हो गया है। किन्तु यह भेद सिर्फ शैली का है, आदेशनाविधि का है। सुत्त सबके लिए मगम हैं, क्योंकि वहाँ बुद्ध-बचन अपने यथार्थ स्वरूप में ग्वने हुए है । अभिधम्म पिटक में बुद्ध-मन्तव्यों का वर्गीकरण और विश्लेषण किया गया है, तात्विक और मनोवैज्ञानिक दृष्टियों से उन्हें गणनावद्ध किया गया है । अतः जब कि सुत्न-पिटक का निरूपण जन-साधारण के लिए उपयोगी है, अभिधम्म पिटक की मचियों और परिभापाओं में वही चने हए व्यक्ति रुचि ले सकते है जिन्होंने बौद्ध तत्त्व-दर्शन को अपने अध्ययन का विशेष विषय बनाया है। इसी अर्थ में अभिधर्म पिटक को 'उच्चतर' धम्म या विप' धम्म कहा गया है । अभिधम्म-पिटक धम्म की अधिक गहराई में उतरता है और अधिक माधनसम्पन्न व्यक्तियों के लिए ही उमका प्रणयन हुआ है, ऐसा बौद्ध परम्परा आरम्भ ने ही मानती आई है। कहा गया है कि देव और मनुप्यों के गास्ता ने 'अभिधम्म का उपदेश सर्व प्रथम बायम्बिश लोक में अपनी माता देवी महानाया और अन्य देवताओं को दिया था। बाद में उसी की पुनरावृत्ति उन्होंने अपने महाप्राज शिष्य धर्मसेनापति सारिपुत्र के प्रति की थी। धर्मसेनापति सारिपुत्र ने ही उन अन्य ५०० भिक्षुओं को सिखाया। इस प्रकार बुद्ध के जीवन-काल में ही सानिएत्र के सहित ५०१ भिक्ष अभिधम्म के ज्ञाता थे। इस प्रकार प्राप्त 'अभिधम्म' का ही सगायन, इम परम्परा के अनुसार, प्रथम दो संगीतिषों में हुआ । तीगरी मगीति में भी इमी की पुनरावृत्ति की गई, किन्तु इसके सभापति स्थविर मोगलिपुत्त तिम्स (मौद्गलिपुत्र तिष्य) ने कथावत्थु' नामक ग्रन्थ को भी जिमकी मोटी रूपरेखा नगवान् बद्ध भविष्य में उत्पन्न होने वाले मिथ्या मत-वादों का इन प्राप्त कर उनके निराकरणार्थ पूर्व ही निश्चित कर गरे थे, पूर्णता देकर 'अभिधम्म' १. अट्ठसालिनी की निदान-कथा; मिलाइये धम्मपदट्ठकथा ४१२, बुद्धचः पृष्ठ ८३-९० में अनुवादित । २. देखिये दूसरे अध्याय में प्रथम दो संगोतियों का विवरण ।
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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